उपेंद्र रावत की कलम से :

यूपीएससी में 257वीं रैंक पाने वाली उत्तराखंड की प्रियंका के गांव में फोन कनेक्टिविटी तक नहीं !

“कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों” इसको सच किया है उत्तराखंड की बेटी प्रियंका दीवान ने यूपीएससी में 257वीं पा कर।
प्रियंका मूल रूप उत्तराखंड के चमोली जिले में आने वाला छोटा सा गांव है रामपुर की रहने वाली है। गांव में लगभग ९० परिवार रहते है और विकास की मामले में ये गांव बहुत ही पिछड़ा हुवा है। यहाँ पर न पक्की सड़कें हैं और न ही प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और स्कूल है वो भी पांचवी
कक्षा तक है। मोबाइल फ़ोन कनेक्टिविटी तो दूर की बात है यहाँ तो लैंडलाइन फ़ोन भी नही है। आजादी के ७४ साल बाद भी उत्तराखंड में या हाल है। अगर गांव में किसी की तबियत ख़राब हो जाए तो उसको इलाज के लिए १०० किमी दूर देवाल आना पड़ता है, तब इलाज मिल पाता है।

प्रियंका दीवान के पिता किसान है और प्रियंका के सेलेक्ट होने की खबर उनको ४ दिन बाद पता चली जब वो कही दूर जा कर मोबाइल में सिगनल मेले तब जा की उनकी बात प्रियंका हुई और खुशखबरी मिली। पता चला की बेटी की सिलेक्शन हो गया है, सिविल सर्विसेज एग्जाम-2019 में 257वीं रैंक पाई है। ये खबर सुनकर परिवार में खुसी की लहर दौड़ पड़ी। आज प्रियंका चर्चा पुरे गांव में है ।

प्रियंका पांचवी तक मैं रामपुर में ही पढ़ी। फिर हर रोज 3 किमी दूर टोरटी गांव जाया करती थी क्योंकि वहां छठवीं से दसवीं तक का स्कूल था। दसवीं के बाद गोपेश्वर आ गए। यह थोड़ी बड़ी जगह है, जहां स्कूल-कॉलेज सब हैं। फिर यहां से ग्रेजुएशन किया।

प्रियंका बताती है :

प्रियंका को वैसे तो पहले से ही यूपीएससी की बारे में पता था पर जब वो जब फर्स्ट ईयर में थी, तब कॉलेज में एक फंक्शन में डीएम आए थे। उन्होंने हम लोगों को कलेक्टर की पोस्ट की अहमियत बताई और कहा कि आप भी प्रयास करें तो सक्सेस पा सकते हैं।
तब पहली बार इस एग्जाम के बारे में पता चला, यह 2012 का किस्सा है। मेरे मामाजी देहरादून के सेशन कोर्ट में जज हैं। जब उनसे इस एग्जाम के बारे में पूछा तो उन्होंने बहुत गाइड किया। तब इसके बारे में थोड़ा बहुत पता चला, लेकिन तब भी मन पूरी तरह से पढ़ाई के लिए तैयार नहीं था। 2012 से ही मैं बच्चों को ट्यूशन दिया करती थी। प्राइवेट स्कूल में भी पढ़ाती थी।

2015 में देहरादून आ गई, क्योंकि एलएलबी करना था। 2017 में लगा कि आखिर कब तक यूं प्राइवेट नौकरी करते रहेंगे। मैं अपने आसपास की चीजों को भी बदलना चाहती थी। गांव के हालात देखकर बहुत मन होता था कि हम कुछ ऐसा बनें, जिससे इन हालात को बदल सकें। फिर सोचा कि एक बार तो एग्जाम देना ही चाहिए।