नैनीताल हाईकोर्ट ने चमोली के रैणी गांव में ग्लेशियर फटने के दौरान आई आपदा में मृतकों और घायलों को अब तक मुआवजा न देने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई हुई मामले को गंभीरता से लेते हुए केंद्र सरकार समेत राज्य सरकारों को अपना जवाब 2 सप्ताह के भीतर कोर्ट में पेश करने के आदेश दिए हैं। वहीं कोर्ट ने केंद्रीय सचिव एनवायरमेंट फारेस्ट एंड क्लाइमेट चेंज, नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन (एनटीपीसी), मौसम विभाग,ऋषि गंगा प्रोजेक्ट में काम कर रहे कुंदन ग्रुप, डीएम चमोली समेत नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने के आदेश दिए हैं। मामले की सुनवाई के लिए कोर्ट ने 25 जून की तिथि नियत की है।
आपको बता दें कि अल्मोड़ा निवासी राज्य आंदोलनकारी पीसी तिवारी ने नैनीताल हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा है कि उत्तराखंड के चमोली में रैणी गांव में फरवरी माह में ग्लेशियर फटने जैसी आपदा सामने आई थी जिसमें कई लोगों की मौत हो गई जबकि कई लोग घायल हुए और राज्य सरकार के द्वारा अब तक किसी भी घायल व मृतक के परिवार वालों को मुआवजा नहीं दिया गया है और ना ही राज्य सरकार के द्वारा मुआवजा वितरित करने के लिए कोई मानक बनाए गए हैं। याचिकाकर्ता का कहना है कि राज्य सरकार के द्वारा क्षेत्र में काम कर रहे नेपाली मूल के श्रमिकों समेत गांव के श्रमिकों को मुआवजा देने के लिए कोई नियम नहीं बनाए गए हैं और राज्य सरकार के द्वारा अब तक मृत्यु प्रमाण पत्र तक भी जारी नहीं किए गए हैं और ना ही मौत के आंकड़ों की पुष्टि की गई है।याचिकाकर्ता के द्वारा कोर्ट को बताया गया कि राज्य सरकार की आपदा से निपटने की सभी तैयारियां अधूरी हैं और सरकार के पास अब तक कोई ऐसा सिस्टम नहीं है जो आपदा आने से पहले उसकी संकेत की सूचना दें ताकि आपदा आने से पहले उसकी जानकारी मिल सके और राज्य सरकार के द्वारा अब तक उच्च हिमालई क्षेत्रों की मॉनिटरिंग के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई है। 2014 में रवि चोपड़ा की कमेटी द्वारा अपनी रिपोर्ट में बताया गया था कि उत्तराखंड में आपदा से निपटने के मामले में सरकार की कई अनियमिततायें है जिसपर राज्य सरकार ने अब तक ध्यान नहीं दिया है जिस वजह से चमोली गांव में इतनी बड़ी आपदा आई और कई लोगो की मौत हुई। वहीं उत्तराखंड में 5600 मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्रों मौसम का पूर्वानुमान लगाने वाले यंत्र नहीं लगे हैं और उत्तराखंड के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में रिमोट सेंसिंग इंस्टीट्यूट अभी तक काम नहीं कर रहे हैं जिस वजह से बादल फटने जैसी घटनाओं की जानकारी नहीं मिल पाती है।
याचिकाकर्ता के द्वारा कोर्ट को बताया गया कि हाइड्रो प्रोजेक्ट टीम के कर्मचारियों की सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं है। सुरक्षा के नाम पर कर्मचारी को केवल हेलमेट और वोट दिए हैं और कर्मचारियों को आपदा से लड़ने के लिए कोई ट्रेनिंग तक नहीं दी गई है और ना ही कर्मचारियों के पास कोई उपकरण मौजूद है ताकि आपदा के समय कर्मचारी अपनी जान बचा सकें। याचिकाकर्ता ने कोर्ट से मांग की है कि एनटीपीसी वर्क कुंदन ग्रुप के ऋषि गंगा प्रोजेक्ट का नक्शा कंपनी के द्वारा आपदा के बाद उपलब्ध नहीं करवाया गया जिस वजह से राहत व बचाव कार्य में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा लिहाजा इन सभी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही भी दर्ज की जाए।
रैणी गाँव मे ग्लेशियर फटने का मामला पहुँचा हाईकोर्ट
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