1828:पहाडी विल्सन मसूरी फौज में भर्ती हुआ था..

मसूरी

फ्रेडरिक विल्सन (पहाडी विल्सन) के बारे में मुझे अब कुछ नये दस्तावेज मिले हैं, जिससे साबित होता है कि वह यार्कशायर में पैदा हुआ और मसूरी बसावत के शुरुआती दौर में 1828 में मसूरी की लंढौर छावनी में नेटिव इन्फेन्ट्री में बतौर सिपाही भर्ती हुआ।विल्सन, कैप्टन फ्रेडरिक यंग का पक्का दोस्त था और मसूरी बसाने में उसका भी निमित्त योगदान था। 1838 में फ्रेडरिक विल्सन अफगान युद्ध में शामिल था और वह पदोन्नति पाकर लेफ्टिनेंट बन गया।

पहले मेरा अनुमान था कि 1841 में अफगान मोर्चे पर कबालियों के बर्बर हमले में डाक्टर बाइडन के साथ बचकर आने वालों में फ्रेडरिक विल्सन भी था और शर्मनाक हार के कारण विल्सन सब कुछ छोडकर हर्षिल चला गया,लेकिन नये दस्तावेज से पता चलता है कि 1841 में मसूरी के विख्यात हिमालय क्लब उद्घाटन के दिन अंग्रेजों और गोरों के आपसी झगडे में विल्सन से अचानक एक गोरा मर गया, विल्सन रातोरात मसूरी से भागा और सुवाखोली से चापडा के रास्ते उत्तरकाशी होते टखनोर ग़गाघाटी में जा छिपा।

मुखवा की रायमिता से विवाह, हर्षिल में बंगला और टिहरी नरेश सुदर्शन शाह से 400 रूपये में गंगा घाटी के शंकु वनों का पटटा हासिल करना और 1850 तक ग़गाघाटी से हरिद्वार और वहां से कलकत्ता तक रेलवे स्लीपर से लेकर कस्तूरी मृग और वन पशुओं का व्यापार, सेब का बाग लगाना और बेतहाशा दौलत कमाना, यह सब काफी बार लिखा जा चुका है।

1847 में विल्सन ने देहरादून में आज के राजपुर रोड पर अपने मित्र कैप्टन यंग के बंगले(आज का सैंट जोजेफ एकेडमी स्कूल) के ठीक बगल में मिस एल्सपेथ एस्टली से आज का एस्ले हाल खरीदा और उसे विस्तार कर भव्य बंगले का स्वरूप दिया। जिसमें रायमिता और मुखवा का उसका चचेरा भाई गुन्धरू काफी साल रहे।

1860 दशक के अंत में रायमिता के जीवित रहते विल्सन ने गुलाबो को बतौर पत्नि रख लिया, पर गोरे समाज के आक्षेपों से बचने के लिए उसने बहुत बाद में 1875 में देहरादून राजपुर रोड के सैन्ट थामस चर्च में गुलाबो को बपतिस्मा के बाद अपनी पत्नि कबूल किया।

1828:पहाडी विल्सन मसूरी फौज में भर्ती हुआ था..

बताते हैं विल्सन की बढती आर्थिक और सामाजिक शक्ति के चलते 1851 में मसूरी के पहले पालिका अध्यक्ष बिल फ्रेथ ने बोर्ड में प्रस्ताव पारित कर फ्रेडरिक विल्सन को हत्या के दोष से मुक्त कर उसे अपनी पालिका का Invited Member मुकर्रर किया।उन दिनों के म्युनिसिपल एक्ट में ऐसे क्रिमिनल मुक्ति के प्रावधान थे, इसके लिए कैप्टन यंग और अनेक प्रबुद्ध गोरे शहरियों ने मसूरी पालिका बोर्ड से पहाडी विल्सन को क्षमा याचना की लिखित गुहार कर लिखा था कि यह आकस्मिक दुर्घटना में हुई मृत्यु थी, जिसे हत्या बताया गया है। यह दस्तावेज भी मेरे पास है।

1850 के दशक में फ्रेडरिक विल्सन ने मसूरी में चार्लीमोन्ट बंगला और कई भूंस़पतियां खरीदी और लंढौर में घंटाघर के निकट अपनी दूसरी पत्नि गुलाबो के लिए Ewanhow नामक काटेज बनायी।विल्सन ने मसूरी में अस्पताल, कोडी घर और चर्चों को बहुत दान दिए। मेरे पास उपलब्ध एक रिकार्ड से पता चलता है कि विल्सन ने 1857 के गदर में मसूरी जान बचाकर भाग के आये गोरे परिवार के खाने का जिम्मा लिया था। विल्सन के बेटों पर लिखने को मेरे पास बहुत मेटेरियल है, उसपर फिर कभी।

फ्रेडरिक विल्सन की मौत 21 जुलाई 1883 को मसूरी में हुई। मसूरी के कैमल्स बैक रोड स्थित क्रिश्चियन सीमेन्ट्री में उसकी दूसरी पत्नि गुलाबो की कब्रें साथ साथ हैं।विल्सन के बारे में लोग चाहे जो कहें, पर उस अंग्रेज ने 19 वीं सदी के घनघोर सांमती अंधकार में विकास, बीहड पहाड में घर घर रोजगार और आधुनिक विचारों की जो आधारशिला रखी, उसका मुकाबला आज तक नहीं हो पा रहा है।