उत्तरकाशी , PAHAAD NEWS TEAM

उत्तरकाशी जिले के आठ गांवों, पटारा, बांदू, मालना, ओल्या, सरतली, जसपुर, डांग और मसून में जल है तो कल है’, ‘जल ही जीवन है’ जैसे नारे का महत्व ग्रामीणों ने अच्छी तरह से समझा है। इसका प्रमाण है उनकी ओर से जल संरक्षण के लिए खड़ा किया गया जन आंदोलन है। इसके तहत, ग्रामीण अभी तक जल स्त्रोत के कैचमेंट क्षेत्र में सामूहिक श्रमदान कर 22 से अधिक चाल-खाल (छोटे-बडे़ तालाब) बना चुके हैं।

जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 50 किलोमीटर दूर डुंडा ब्लाक के भंडारस्यूं क्षेत्र में 20 से अधिक गाँव पड़ते हैं। इन गांवों की पेयजल योजनाएं निकटवर्ती बौंठा टॉप के जंगल से निकलने वाले सरतली गदेरे से संचालित हो रही हैं। लेकिन, पिछले बीस वर्षों से , सरतली गदेरे का जल स्तर भी धीरे-धीरे कम हो रहा है। साथ ही, गांवों में बढ़ती आबादी के कारण, पानी की मांग भी लगातार बढ़ रही है। और गांवों में पेयजल संकट के संकेत सामने आ रहे हैं। इन गांवों में आजीविका के लिए काम कर रहे रिलायंस फाउंडेशन ने वर्ष 2018 में पेयजल संकट की समस्या को समझा। जब जल संचय के साधनों की खोज की गई, तो सरमाली जलस्त्रोत के कैचमेंट क्षेत्र बौंठा टॉप व आसपास वर्षो पुराने ताल व चाल-खाल सूखे पड़े मिले।

इस पर फाउंडेशन के प्रोजेक्ट डायरेक्टर कमलेश गुरुरानी ने ग्रामीणों को चाल-खाल बनाने के लिए प्रेरित किया। फिर क्या था, आठ गांवों के ग्रामीणों ने गैंती-फावड़े उठाए और जुट गए जलस्रोत के कैचमेंट एरिया में चाल-खाल तैयार करने में। ग्राम पंचायत ओल्या के पूर्व प्रधान मदन मोहन भट्ट का कहना है कि सरमाली जल संसाधनों का आधार वन और वर्षा जल है। इस स्रोत से दस से अधिक पेयजल योजनाएँ संचालित हैं। उन्होंने आशा व्यक्त की कि ग्रामीणों के तैयार किए चाल-खाल से सरमाली गदेरे के स्त्रोत में पानी की कमी नहीं रहेगी।
वर्षा जल से स्रोतों का पुनर्भरण होता है

भागीरथी, अलकनंदा, मंदाकिनी, यमुना, भिलंगना, टौंस जैसी नदियाँ पर्वतीय क्षेत्र में उच्च हिमालयी क्षेत्र के ग्लेशियर से निकलती हैं। जबकि, अधिकांश छोटी, लेकिन महत्वपूर्ण नदियों के स्रोत जंगलों में हैं। इन प्राकृतिक जल निकायों को वर्षा जल से रिचार्ज किया जाता है। पहाड़ के अधिकांश गाँवों की पेयजल योजनाएँ भी इन्हीं जल स्रोतों पर बनी हैं। हालांकि, घटते जंगल और बारिश के पानी के कारण, इन जल संसाधनों को ठीक से रिचार्ज नहीं किया जा रहा है। इससे ग्रीष्म काल में ये सूखने की कगार पर आ जाते हैं।

‘हमारे पूर्वजों के पास जल संरक्षण के लोक विज्ञान पर आधारित चाल-खाल से जलस्त्रोत को पुनर्जीवित करने का एक सरल तरीका था। लेकिन, हमने इस पर ध्यान देना बंद कर दिया। इसका असर जल स्रोतों पर भी देखा गया। अब डुंडा ब्लाक के कुछ गाँवों के ग्रामीणों ने जल संरक्षण के लिए चाल-खाल बनाने और पुराने चाल-खाल को पुनर्जीवित करने का काम शुरू किया है। जल जीवन के लिए ग्रामीणों का यह जन आंदोलन निश्चित रूप से सफल होगा और एक उदाहरण बनेगा ।

-कमलेश गुरुरानी, परियोजना निदेशक, रिलायंस फाउंडेशन