टिहरी : वर्ष 1978 में स्वीकृत लखवाड़ व्यासी विद्युत परियोजना मे बांध निर्माण मे 1992 में 30 प्रतिशत काम होने के बाद पैसे की कमी के कारण सरकार ने काम रोक दिया था। परियोजना मे पूर्ण रूप से विस्थापित लोहारी गांव के लोगों की जमीने सरकार ने 40 साल से अधिग्रहित कर रखी है। परन्तु अभी तक ग्रामीणो को विस्थापित किये जाने को लेकर अन्यत्र जमीने नही दी गयी है।


ग्रामीणो द्वारा जमीन के अधिग्रहण के बदले जमीन दिये जाने की मांग की जा रही है। बिडम्बना तो देखिये आज जब बाँध का लगभग 90% कार्य पूरा हो चुका है, तब भी सरकार द्वारा ग्रामीणो के विस्थापन सम्बन्धी मांगो की अनदेखी की जा रही है। हालात यह है कि ग्रामीण विवश होकर महिलाओ व बच्चों के साथ नदी के बहाव के बीच जान माल की चिन्ता से छोड़कर धरने पर बैठने को मजबूर है।


आज हालात यह है कि सरकार मे बैठे नुमाईंदे इन ग्रामीणो की सुध तक नही ले रहे है। जनप्रतिनिधियों का काम जनता की समस्याओं का निराकरण करना है ना कि उसकी उपेक्षा करना। परन्तु सत्ता, नौकरशाही और परिस्थिति के फायदे से उत्पन्न दलाल किस तरह जनता को गुमराह कर सीधे साधे गांव वालो को सत्ता के निर्णयों का मूक अनुकर्ता बनाने की कवायद में लगे रहते है। इसका नतीजा है कि ताकतवर और भी ज्यादा ताकतवर बनते जा रहे हैं कमजोर व अभावग्रस्त लोहरी गांव वालों की तरह और भी हाशिए धकेल दिए जा रहे है।


आप को याद होगा कि टिहरी बांध परियोजना विस्थापन से कई गांव प्रभावित हुए थे जिनके विस्थापन प्रक्रिया में इसलिए तेजी लाई गई थी, क्योंकि वहां पर विस्थापित होने वाले लोगों की संख्या बहुतायत थी तथा उनका साथ समाज के कई मानवाधिकार, सामाजिक एवं प्रगतिशील संगठनों ने अपनी संवेदनाएं एवं समर्थन देकर मांगों को मानने के लिए विवश किया था।।। जबकि लखवाड़ व्यासी विद्युत परियोजना में सीधे प्रभावित संख्या बल में कम होने के कारण उपेक्षित है।।।


विस्थापन से लोगों को पारंपरिक जमीन, परिवेश को त्यागकर पलायन को विवश होना पड़ता है, क्योंकि उनकी जीविका का आधार मात्र ही समाप्त हो जाता है। पुश्तैनी घर को उजड़ते देखना भयावह मंजर जैसा होता है। सरकार दावा करती है कि हम विस्थापितों को आश्रय दे रहे हैं पर उसे क्या पता कि, जिस पेड़ पौधों को उन्होने अपने बच्चो जैसा पाला-पोसा है उसका क्या, जिन पशु-पक्षियों की कोलाहल से उनकी सुबह-शाम होती, क्या पुनर्वास के जगह पर वह सब मिल पाएगा? क्या भावनाओं को किसी पैसे की तराजू पर तौला जा सकता है। कभी नही।।।। अपने पूर्वजों की उस विरासत को छोड़कर जाने में उन्हें किस दुःख से गुजरना पड़ता होगा उस वेदना को तो वहीं जानते है।


मुश्किलो से निर्मित उनके घर, स्कूल, अस्पताल, उपजाऊ जमीने, कुल देवी देवताओ के मंदिर, जानवर और उनके सुरक्षित ठौर-ठिकाने, छानियां सब कुछ विकास के नाम पर लिए निर्णयों की बलि चढ़ जाते है।