केम्पटी :
धनोल्टी विधान सभा के अंतर्गत जौनपुर छेत्र का बहुत ही प्रशिद्ध और पौराणिक मौण मेला आज बड़े धूम धाम के साथ मनाया गया, आपको बता दे की ये मेला जौनपुर का ऐतिहासिक मेला होता है जो की 1866 में सुरु हुवा और आज तक मेले का आयोजन हो रहा है।
टिहरी जनपद के जौनपुर क्षेत्र की संस्कृति जितनी पौराणिक है उससे कहीं ज्यादा आकर्षक यहां के रीति रिवाज और पारंपरिक पर्व है, यहां का मौण मेला तो अद्भुत है .. एक साथ हजारों लोग यमुना की सहायक नदी अगलाड नदी में उतरते है, पारंपरिक तरीके कुंडियाला – फटियाना – जाव – हतोय ( हाथ से पकड़ना ) से मछली – गुज पकड़ते है,
सबसे पहले मौण कोटे पर सभी लोग जमा होते है फिर जिस पट्टी की बारी होती है वहां के सीनियर मोस्ट लोग टिमरू का पाउडर नदी में डालते है जिससे मछलियां मरती नहीं है बल्कि कुछ क्षणों के लिए बेहोश हो जाती है.. और इसी दौरान मछोई इन मछलियों को पकड़ लेते है।
आपको बता दे की इस राजशाही मौण मेले की शुरुवात 1866 में टिहरी रिहाशत के राजा ने की थी … तब से ये ये पर्व निरंतर रूप से मनाया जा रहा है। क्षेत्र के बुजुर्गों का कहना है कि इसमें टिहरी नरेश स्वयं अपने लाव लश्कर एवं रानियों के साथ मौजूद रहते थे। मेले में मछलियां पकड़ने वालों के हाथों में पारंपरिक उपकरण होते हैं,
मछलियों को मारने के लिए प्राकृतिक जड़ी बूटी का प्रयोग किया जाता है, जिसे स्थानीय भाषा में टिमरू कहते हैं। इस पौधे की छाल का पाउडर बनाया जाता है, जिसे नदी में डाला जाता है जिससे मछलियां बेहोश हो जाती है। लोग मछलियों को नदी में जाकर पकड़ते हैं। लोग पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ नाचते गाते उस स्थान पर जाते हैं, जहां से मौण डाला जाता है। उस स्थान को मौण कोट कहते हैं। पांतिदार पारंपरिक तरीके से पहले टिमरू के पाउडर को डालते हैं। जिसके बाद हजारों की संख्या में लोग मछलियों को पकड़ने नदी में कूद पड़ते हैं। करीब पांच किलोमीटर क्षेत्र में मछली पकड़ी जाती है।
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