देहरादून।
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में स्टोन फ्रूट (गुठलीदार फल जैसे आड़ू, प्लम, खुमानी) की खेती को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ‘धाद’ संस्था और दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र द्वारा एक विमर्श कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में विशेषज्ञों ने पारंपरिक बीजों की उपयोगिता और आधुनिक बागवानी तकनीकों की संभावनाओं पर विचार साझा किए।

कार्यक्रम में वक्ताओं ने इस बात पर बल दिया कि उत्तराखंड की भौगोलिक और जलवायु परिस्थितियाँ स्टोन फ्रूट्स की खेती के लिए बेहद अनुकूल हैं। यदि इस दिशा में योजनाबद्ध तरीके से कार्य किया जाए, तो यह सेब और कीवी जैसे फलों से भी अधिक लाभदायक सिद्ध हो सकता है। हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर उत्तराखंड को भी स्टोन फ्रूट की ओर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

‘आड़ू, प्लम, खुमानी का महीना’ अभियान के अंतर्गत आयोजित इस विमर्श में ‘धाद’ के सचिव तन्मय ने बताया कि संस्था ‘हरेला गाँव’ अध्याय के माध्यम से पहाड़ के फलों के उत्पादन और विपणन को लेकर निरंतर कार्य कर रही है। माल्टे के बाद अब स्टोन फ्रूट्स पर विशेष अभियान शुरू किया गया है, जिसमें किसान, समाज और बाजार के बीच संवाद स्थापित किया जा रहा है।

मुख्य वक्ता विजय जड़धारी (बीज बचाओ आंदोलन) ने कहा कि अगर घनश्याम सैलानी जैसे लोगों ने पेड़ों की महत्ता को लेकर आह्वान न किया होता, तो आज यह जागरूकता न होती। उन्होंने उत्तराखंड की विशिष्ट पहचान के निर्माण और संरक्षण पर बल दिया।

कृषक बागवानी संगठन के अध्यक्ष बीरभान सिंह ने बताया कि राज्य के 1000 से 2000 मीटर ऊंचाई वाले क्षेत्रों में स्टोन फ्रूट की बेहतर संभावनाएं हैं। यदि स्थानीय बाजार में इन्हें बेचा जाए, तो किसानों को बड़े बाजारों में जाने की जरूरत नहीं होगी। जैविक खेती के प्रति बढ़ती रुचि को देखते हुए, ये फल बिना अधिक रसायनों के बेहतरीन उत्पादन दे सकते हैं।

प्रगतिशील किसान पवन बिष्ट ने कहा कि उत्तराखंड बनने के बाद राज्य में करीब 85 लाख सेब के पौधे लगाए गए हैं। उन्होंने बच्चों में बीज बचाने की चेतना लाने के लिए ‘बीज लाओ अभियान’ की जानकारी दी, जिसमें 10,000 बच्चों को शामिल कर पारंपरिक बीज एकत्र किए जाएंगे।

धाद अध्यक्ष लोकेश नवानी ने बताया कि पहले पहाड़ी फलों की ब्रांडिंग नहीं की गई, लेकिन अब इनके प्रचार-प्रसार और बाजार में पहचान बनाने की जरूरत है। सरकार को इस दिशा में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए ताकि राज्य आर्थिक रूप से सशक्त बन सके।

इस अवसर पर ‘सीढ़ी पोस्टर’ का विमोचन भी किया गया, जिसे जैविक खेती और मृदा आधारित कृषि के लिए दिनेश सेमवाल द्वारा तैयार किया गया है। कार्यक्रम का संचालन हिमांशु आहूजा ने किया।

वक्ताओं में शामिल थे: विभा पुरी, दिनेश सेमवाल, संजीव कंडवाल, प्रेम बहुखंडी, अवधेश शर्मा, संदीप गुसाईं, विनोद भट्ट आदि।
विशेष उपस्थिति में: आरसी कोश्यारी,दिनेश सेमवाल,शिव प्रकाश जोशी,अवधेश शर्मा,सत्यव्रत आई.पी.एस.,टी.आर. बरमोला, जी.सी.उनियाल, बीजू नेगी, एस नौटियाल,विनोद भट्ट, नीना रावत, आशा डोभाल, बीरेंद्र खंडूरी, मेजर जी केडी सिंह, बीएम उनियाल, साकेत रावत, अनीता त्रिवेदी, विवेक तिवारी, कल्पना बहुगुणा, श्वेता,नीलेश, सुनीता बहुगुणा, आलोक सरीन, सुभाष चन्द्र नौटियाल, विनोद कुमार, आशीष शर्मा, जेपी मैठाणी, संजीव कंडवाल, पी के डबराल, दिनेश गुसाईं,प्रोफेसर रचना नौटियाल,रवीन्द्र नेगी, मनोज, राजू गुसाईं, नीरज कुमार, शुभम शर्मा मौजूद थे |