Dehradun :

निगम चुनावों में कांग्रेस को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा, जिससे पार्टी के अंदर हलचल मच गई है। हार से तिलमिलाए कांग्रेसी नेता अब अनर्गल बयानबाजी कर रहे हैं। हर छोटा-बड़ा नेता खुद को “ईमानदार सिपाही” साबित करने के लिए एक-दूसरे से इस्तीफा मांग रहा है। वफादार कार्यकर्ताओं की बेचैनी चरम पर है, लेकिन हाई कमान की ओर से केवल एक दिन की औपचारिक बैठक करके मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।

राजधानी के नगर निगम क्षेत्र में कांग्रेस की स्थिति तो और भी बदतर है। यह क्षेत्र बड़े-बड़े कांग्रेसी नेताओं का गढ़ माना जाता है, लेकिन उन्हीं के नेतृत्व में पार्टी अपनी साख गंवा बैठी। कार्यकर्ता अब खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं। उनका मनोबल पूरी तरह टूट चुका है और उन्हें हौसला देने के बजाय, हाई कमान चुप्पी साधे बैठा है।

जो लोग पार्टी के साथ छल कर रहे थे, आज वे बेखौफ होकर सीना तानकर चल रहे हैं। उन्हें पता है कि हाई कमान की भूमिका महज “दर्शक” की रह गई है। पार्टी को अगर खुद को बचाना है, तो ऐसे दोगले नेताओं पर तुरंत कार्रवाई करनी होगी। जिनका दिल बीजेपी में और पैर कांग्रेस में है, उन्हें कम से कम छह साल के लिए बाहर का रास्ता दिखाना चाहिए।

अगर यही रवैया जारी रहा, तो कांग्रेस का जमीनी कार्यकर्ता अपने घर बैठ जाएगा और 2027 की लड़ाई में पार्टी का संघर्ष कठिन हो जाएगा। हाई कमान को अब जागना होगा। उन्हें तुरंत समीक्षा बैठक बुलाकर, हार की गहराई से पड़ताल करनी होगी। दोषियों पर कार्रवाई नहीं हुई तो पार्टी बिखर कर ताश के पत्तों की तरह धराशायी हो जाएगी। अब सवाल यह है—क्या कांग्रेस अपने अस्तित्व को बचा पाएगी, या यह हार उसकी अंतिम चेतावनी बन जाएगी?