रिपोर्टर- पहाड़ न्यूज़
लोहारी (टिहरी गढ़वाल)। यमुना नदी पर बन रहे लखवाड़ बांध (300 मेगावाट) परियोजना के खिलाफ किसानों और प्रभावित काश्तकारों का आंदोलन लगातार तेज़ होता जा रहा है।सातवें दिन भी धरना-प्रदर्शन जारी रहा, जिसमें बड़ी संख्या में ग्रामीण, महिलाएं और बेरोजगार युवा शामिल हुए।
धरना पाली ग्राम पंचायत के अंतर्गत कूणा गांव में चल रहा है, जहां प्रभावित काश्तकार “लखवाड़ बांध प्रभावित संयुक्त संघर्ष मोर्चा” के बैनर तले एकजुट हुए हैं।

धरना क्यों? – आंदोलन की पृष्ठभूमि
लखवाड़ बांध परियोजना के लिए वर्ष 1974 से 1992 के बीच टिहरी और देहरादून ज़िले के लगभग 32 गांवों की उपजाऊ भूमि अधिग्रहित की गई थी।
ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें उस समय ना तो उचित मुआवजा मिला, ना पुनर्वास की कोई ठोस योजना बनी।
अब सरकार परियोजना के विस्तार के लिए 53 हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि 17 नए गांवों से अधिग्रहित कर रही है।
इससे लोगों में गुस्सा और असंतोष गहराता जा रहा है।
प्रमुख मांगें
धरने पर बैठे किसानों ने अपनी पाँच प्रमुख माँगें रखी हैं —
1. भूमि के बदले भूमि दी जाए।
2. यदि भूमि नहीं दी जा सकती, तो वर्तमान बाजार दर पर उचित मुआवजा दिया जाए।
3. हर प्रभावित परिवार से एक सदस्य को सरकारी नौकरी मिले।
4. स्थानीय युवाओं को ठेके और परियोजना कार्यों में प्राथमिकता दी जाए।
5. पुनर्वास योजना को लागू कर विस्थापितों को स्थायी आवास और सुविधाएँ दी जाएँ।
प्रदर्शनकारियों की भावनाएँ — “काश्तकार साथियों, याद रखें…”
धरना स्थल पर किसानों ने एक साझा अपील जारी की है जो आंदोलन की भावना को दर्शाती है —
“काश्तकार साथियों, याद रखें… हमने अपनी पैतृक भूमि/संपत्ति को सरकार को बेचा नहीं है। हमने राष्ट्र की प्रगति अथवा राष्ट्र निर्माण के लिए अपनी भूमि/संपत्ति दी है, ताकि हमारे देश की प्रगति में रुकावट न आए…!!
एवज में पहले तो काश्तकारों को भूमि के बदले भूमि ही मिलनी चाहिए, पर भूमि दे पाना यदि सरकार के बस का नहीं तो कम से कम हमारी मूल्यवान सिंचित भूमि के उचित दाम तो मिलें…!!
सरकार इतनी आसानी से डिगने और झुकने वाली नहीं है, हमें अपने हक के लिए पूरी ताकत के साथ एकजुट होकर लड़ना होगा…!!
इसलिए सभी क्षेत्रवासी व काश्तकार साथी अधिक से अधिक संख्या में धरना स्थल लोहारी पहुंचे, नहीं तो यह मौका भी हाथ से निकल जाएगा और फिर पछतावे के अलावा कुछ नहीं बचेगा…!!
✨जय जवान ???? जय किसान✨
प्रशासन की प्रतिक्रिया
धरना स्थल पर एसडीएम नैनबाग मंजू राजपूत पहुँचीं और उन्होंने प्रदर्शनकारियों से वार्ता की।
उन्होंने किसानों से तीन दिन का समय माँगा और कहा —
“हम प्रशासनिक स्तर पर समस्या का समाधान निकालने की कोशिश कर रहे हैं। किसानों के हितों की अनदेखी नहीं होगी।”
हालाँकि किसानों ने साफ कहा है कि जब तक लिखित आश्वासन नहीं मिलता, वे धरना स्थल नहीं छोड़ेंगे।
किसानों के आरोप
• प्रभावित ग्रामीणों ने बताया कि बिना पूरी मुआवजा प्रक्रिया के एलएनटी कंपनी ने बांध स्थल पर कार्य शुरू कर दिया, जो कि नियमों के विरुद्ध है।
• कई परिवार ऐसे हैं जिन्हें अभी तक एक भी रुपया मुआवजा नहीं मिला।
• अधिग्रहित भूमि अत्यंत उपजाऊ (सिंचित) थी, जिससे उनकी आजिविका का मुख्य साधन समाप्त हो गया।
आगे की राह
प्रशासन और आंदोलनकारी काश्तकारों के बीच बातचीत जारी है।
यदि तीन दिन में समाधान नहीं निकला, तो संयुक्त संघर्ष मोर्चा ने चेतावनी दी है कि आंदोलन और उग्र किया जाएगा।
वहीं, परियोजना से जुड़ी कंपनियाँ कह रही हैं कि कार्य समय पर पूरा होना आवश्यक है, लेकिन प्रभावितों के मुद्दों को लेकर सरकार को त्वरित निर्णय लेना होगा।
स्थानीय लोगों की आवाज़
ग्राम सभा अध्यक्ष का कहना है —
“हम विकास के विरोधी नहीं हैं, लेकिन विकास किसी के अधिकारों की कीमत पर नहीं होना चाहिए। हमें हमारी भूमि का न्यायोचित मूल्य और सम्मान चाहिए।”
निष्कर्ष
लखवाड़ बांध आंदोलन अब केवल मुआवजे की लड़ाई नहीं रहा, बल्कि यह किसानों की अस्मिता और अधिकारों की लड़ाई बन गया है।
ग्रामीणों का कहना है कि वे पीछे नहीं हटेंगे, जब तक उन्हें न्याय नहीं मिलता।
प्रशासन के लिए यह एक बड़ी चुनौती बन गई है कि वह विकास और जनभावना — दोनों के बीच संतुलन कैसे बनाए।

 
                                         
                                         
                                         
                                         
                                 
                                                     
                                                     
                                                    

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