मेडिकल साइंस ने वर्षों पहले ही बांझपन का इलाज शुरू कर दिया था। लंबी स्टडी और अध्ययन के बाद गर्भधारण की कृत्रिम प्रक्रिया की खोज की गई। इस प्रक्रिया को आईवीएफ कहा जाता है। पिछले कुछ सालों में आईवीएफ का चलन तेजी से बढ़ा है। अगर किसी कारणवश कोई महिला मां नहीं बन पाती तो यह प्रक्रिया उसके लिए एक तकनीकी वरदान है।बांझपन की समस्या से निजात पाने के लिए पीड़ितों को इस तकनीक के बारे में जागरूक करने के लिए हर साल दुनिया भर में विश्व आईवीएफ दिवस मनाया जाता है। आइए जानते हैं इस दिन को मनाने की शुरुआत कब से हुई। आईवीएफ क्या है और किस तकनीकी प्रक्रिया से महिलाएं मां बन सकती हैं।
आईवीएफ का पूरा नाम
आईवीएफ का मतलब इन विट्रो फर्टिलाइजेशन है। आम बोलचाल की भाषा में इसे टेस्ट ट्यूब बेबी भी कहा जाता है। यह उन जोड़ों के लिए गर्भधारण का एक कृत्रिम साधन है जो प्राकृतिक रूप से गर्भधारण करने में विफल रहे हैं।

आईवीएफ दिवस कब मनाया जाता है?
हर साल 25 जुलाई को दुनिया भर में आईवीएफ दिवस मनाया जाता है। इस दिन को मनाने की शुरुआत 1978 में हुई, जब आईवीएफ के जरिए पहले बच्चे का जन्म हुआ। तब से हर साल 25 जुलाई को विश्व भ्रूणविज्ञान दिवस मनाया जाता है।
विश्व भ्रूणविज्ञान दिवस मनाने का उद्देश्य
यह दिन भ्रूणविज्ञानियों को धन्यवाद देने का दिन है, जो जीवन बचाने के साथ-साथ जीवन देने का भी काम करते हैं। आईवीएफ दिवस उन जोड़ों को माता-पिता बनने की नई राह दिखाने के उद्देश्य से मनाया जाता है, जो गर्भधारण की उम्मीद खो चुके हैं।
आईवीएफ दिवस का इतिहास
10 नवंबर 1977 को लेस्ली ब्राउन नाम की एक महिला ने डॉक्टर पैट्रिक स्टेप्टो और रॉबर्ट एडवर्ड्स की मदद से आईवीएफ कराया और 25 जुलाई 1978 को एक लड़के को जन्म दिया।
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