चमोली, पहाड़ न्यूज टीम

उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में हो रहे भूस्खलन को देखते हुए जहां पर्यावरणविद इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निर्माण और खनन का विरोध कर रहे हैं, वहीं पूरे हिमालय क्षेत्र को खतरनाक बता रहे हैं, वहीं दूसरी ओर राज्य सरकार इस बात की परवाह किए बिना राज्य सरकार इन क्षेत्रों में लगातार इस तरह की गतिविधियां कर रहा है। जो तमाम असुविधाओं के बावजूद पलायन कर यहां रहने वाले ग्रामीणों की मुश्किलें और बढ़ा देता है. ताजा मामला चमोली जिले के थराली विकासखंड का है जहां ग्रामीणों के विरोध को दरकिनार करते हुए मोबाइल स्टोन क्रेशर की अनुमति दे दी गई है. इस स्टोन क्रेशर के खिलाफ ग्रामीण पिछले 21 दिनों से लगातार आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन उनके शांतिपूर्ण आंदोलन का प्रशासन पर कोई असर नहीं हो रहा है.

जानकारी के अनुसार चमोली जिले के इस थराली विकासखंड के पस्तोली क्षेत्र की पिंडर घाटी में ग्रामीणों के विरोध के बाद भी सरकार ने मोबाइल स्टोन क्रेशर संचालित करने की अनुमति दे दी है. जहां से यह अनुमति दी गई है, उस स्थान से एक किमी. की दूरी पर पहले से ही एक अन्य स्टोन क्रेशर पहले से ही संचालित किया जा रहा है। वहां पहले से चल रहे इस स्टोन क्रेशर के शोर और प्रदूषण से ग्रामीण पहले से ही परेशान थे कि ग्राम पंचायत जबरकोट और पास्तोल की सीमा पर लगाए जा रहे एक और नए स्टोन क्रेशर से ग्रामीण सकते में आ गए हैं.

ग्राम पंचायत जबरकोट और पास्तोल के लोगों का कहना है कि स्टोन क्रेशर के पास एक स्कूल भी है. जिस स्कूल में गांव के छोटे-छोटे बच्चे पढ़ते हैं। यह स्टोन क्रेशर उन बच्चों के लिए खतरा है। इस क्रशर प्लांट से गांव की कृषि भूमि महज पांच मीटर की दूरी पर है। जिससे गांव के लोगों की रोजी-रोटी चलती है। स्टोन क्रशर लगने के बाद उनके जलस्रोतों के नष्ट होने के साथ-साथ उनकी कृषि भूमि के नष्ट होने की भी आशंका है।

जिस स्थान पर क्रशर लग रहा हैं उसके सामने से सड़क जाती हैं जो दस-बारह गांवों को जोड़ती है। इस सड़क से गांव के बच्चे पैदल ही स्कूल जाते हैं। प्लांट से मात्र 300 मीटर की दूरी पर एक इंटर कॉलेज और पॉलिटेक्निक स्कूल भी है। जिस जमीन पर क्रशर प्लांट लगाया जा रहा है वह भूस्खलन वाला क्षेत्र है, जिससे भविष्य में जबरकोट, ताजपुर मल्ला और तल्ला और ग्राम बुढ़ाडांग को बड़ा खतरा हो सकता है। भू-माफियाओं के दबाव में इस स्टोन क्रेशर को अनुमति देकर सरकार उनके गांव की खुशियां तबाह करने की कोशिश कर रही है.

स्टोन क्रेशर के विरोध में दोनों गांवों की महिलाओं ने खुला मोर्चा खोल दिया है. इस स्टोन क्रेशर की अनुमति रद्द करने के लिए ग्रामीणों ने 15 जून से शांतिपूर्ण आंदोलन शुरू कर दिया है. कई चरणों के आंदोलन के बाद बीती रात ग्रामीणों ने थराली में मशाल जुलूस भी निकाला. आंदोलन की गर्मी को भांपते हुए प्रशासन की ओर से स्थानीय एसडीएम रविंद्र जुवांठा भी ग्रामीणों से संवाद करने पहुंचे, लेकिन वह भी ग्रामीणों को स्टोन क्रशर हटाने का कोई ठोस आश्वासन नहीं दे सके.

ग्रामीणों का कहना है कि उपजिलाधिकारी की ओर से ही आश्वासन दिया गया जिससे ग्रामीण काफी मायूस थे. आक्रोशित ग्रामीणों का कहना है कि वे आंदोलन के माध्यम से स्टोन क्रेशर को पूरी तरह से हटाना जारी रखेंगे। इसके लिए वह अपनी जान दांव पर लगाने को तैयार हैं। ग्रामीणों का कहना है कि पहाड़ों में मूलभूत सुविधाओं के अभाव के कारण, जहां लोगों की पलायन की प्रवृत्ति होती है, ऐसी नीतियां उन्हें पलायन करने के लिए मजबूर करती हैं। एक तरफ सरकार रिवर्स माइग्रेशन की बात करती है तो दूसरी तरफ पहाड़ के बाकी लोगों का जीना मुश्किल कर रही है. जिन जगहों पर स्कूल, अस्पताल, खेल के मैदान खोले जाने चाहिए थे। उन जगहों पर स्टोन क्रशर जैसे प्रोजेक्ट शुरू किए जा रहे हैं।

हालांकि स्टोन क्रेशर के खिलाफ आंदोलन केवल दो गांवों के लोगों ने शुरू किया था, लेकिन जैसे-जैसे यह आंदोलन बढ़ रहा है, इसे व्यापक जन समर्थन मिल रहा है. सेरा विजयपुर के प्रधान प्रेम चंद्र शर्मा, ग्राम बजवाड़ के प्रधान विनोद जोशी, ग्राम माल बजवाड़ के गजेंद्र सिंह रावत सहित कई लोगों ने इस आंदोलन के समर्थन में आकर ग्रामीणों की समस्या को जायज बताया है.

एक ओर जहां ग्रामीण इस स्टोन क्रेशर के खिलाफ तमाम आपत्तियां उठा रहे हैं, वहीं इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि ग्रामीणों की तमाम आपत्तियों को दरकिनार करते हुए प्रशासन ने उन्हें बुलाकर स्टोन क्रेशर के पक्ष में रास्ता साफ कर दिया है. राजस्व उपनिरीक्षक कुलसारी, राजस्व उपनिरीक्षक थराली, भूतत्व एवम् खनिकर्म इकाई चमोली के सर्वेक्षक अधिकारी और तहसीलदार थराली की इस संयुक्त जांच आख्या में ग्रामीणों की सभी आपत्तियों को निराधार बताते हुए इसकी रिपोर्ट जिला प्रशासन को दे दी गई है.

स्टोन क्रशर के खिलाफ चल रहे आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभा रहे क्षेत्र के युवा समाजसेवी कपूर रावत का कहना है कि 21 दिन के आंदोलन के बाद भी प्रशासन उन्हें सुनने के बजाय स्टोन क्रशर के हित में एकतरफा कार्रवाई कर रहा है. खनन को लेकर राज्य सरकार की कोई स्पष्ट नीति नहीं है। बड़ी नदियों के बाद अब राज्य सरकार गांव के छोटे-मोटे गाड़-गधेरों को खुदवाकर पर्यावरण को नष्ट करने की ठान चुकी है. अगर यही स्थिति बनी रही तो ग्रामीणों का इस माहौल में रहना मुश्किल हो जाएगा, जिसके बाद मजबूरी में लोगों को यहां से पलायन करना पड़ेगा।