देहरादून : भारत का पहला लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (एसएसएलवी) लॉन्च किया गया है। यह एसएसएलवी पृथ्वी अवलोकन उपग्रह और छात्रों द्वारा निर्मित उपग्रह ले जा रहा है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने यह जानकारी दी। इसरो ने 500 किलोग्राम तक के उपग्रहों को 500 किमी तक की निचली पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने का मिशन शुरू किया है। इसका लक्ष्य तेजी से बढ़ते एसएसएलवी बाजार का एक बड़ा हिस्सा बनना है।

इसरो ने रविवार को अपनी वेबसाइट पर कहा, ‘एसएसएलवी-डी1/ईओएस-02 मिशन: 2:26 बजे उलटी गिनती शुरू हुई। SSLV का उद्देश्य उपग्रह EOS-02 और आजादीसैट को पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित करना है। रॉकेट को चेन्नई से करीब 135 किलोमीटर दूर सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SHAR) के पहले लॉन्च पैड से सुबह 9.18 बजे लॉन्च किया गया।

प्रक्षेपण के करीब 13 मिनट बाद रॉकेट के इन दोनों उपग्रहों को निर्धारित कक्षा में स्थापित करने की उम्मीद है। अपने ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी), भूस्थैतिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (जीएसएलवी) के माध्यम से सफल अभियानों को अंजाम देने में एक खास जगह बनाने के बाद इसरो लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (एसएसएलवी) से पहला प्रक्षेपण करेगा, जिसका इस्तेमाल पृथ्वी की निचली कक्षा में उपग्रहों को स्थापित करने के लिए किया जाएगा । इसरो के वैज्ञानिक पिछले कुछ समय से ऐसे छोटे उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए छोटे प्रक्षेपण यान के विकास में लगे हुए हैं, जिनका वजन 500 किलोग्राम तक है और जिन्हें पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित किया जा सकता है।

एसएसएलवी 34 मीटर लंबा है जो पीएसएलवी से लगभग 10 मीटर कम है और पीएसएलवी के 2.8 मीटर की तुलना में इसका व्यास दो मीटर है। एसएसएलवी का उत्थापन द्रव्यमान 120 टन है, जबकि पीएसएलवी का 320 टन है, जो 1,800 किलोग्राम तक के उपकरण ले जा सकता है। इसरो ने फ्रा-रेड बैंड्स में उन्नत ऑप्टिकल रिमोट सेंसिंग उपलब्ध कराने के लिए पृथ्वी अवलोकन उपग्रह बनाया है। EOS-02 अंतरिक्ष यान की लघु उपग्रह श्रृंखला का एक उपग्रह है।

‘आज़ादीसैट’ में 75 अलग-अलग उपकरण हैं, जिनमें से प्रत्येक का वजन लगभग 50 ग्राम है। देश भर के ग्रामीण क्षेत्रों की छात्राओं को इन उपकरणों के निर्माण के लिए इसरो के वैज्ञानिकों द्वारा निर्देशित किया गया था जो ‘स्पेस किड्स इंडिया की छात्र टीम द्वारा एकीकृत हैं। इस उपग्रह से डेटा प्राप्त करने के लिए ‘स्पेस किड्स इंडिया द्वारा विकसित ग्राउंड सिस्टम का उपयोग किया जाएगा।