उत्तरकाशी: फाल्गुन माह में हर कोई होली के रंग में सराबोर रहता है, लेकिन उपला टकनौर क्षेत्र में आयोजित मक्खन और मट्ठे से खेली जाने वाली होली अंढूड़ी की अलग ही पहचान है. इस बार भी दयारा बुग्याल में समेश्वर देव डोली और पांडव पश्वों के सानिध्य में बटर फेस्टिवल धूमधाम से मनाया गया. इस दौरान कृष्ण और राधा की मटकी फोड़ने के बाद पंचगाई पट्टी सहित आसपास के ग्रामीणों ने दूध, दही और मक्खन से होली खेली. लोगों ने गुलाल की जगह एक दूसरे पर दूध और मक्खन लगाकर रासो तांदी नृत्य किया.

आपको बता दें कि उत्तरकाशी जिले में करीब 11 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित दयारा बुग्याल में अंढूड़ी उत्सव पारंपरिक तरीके से मनाया गया. दयारा पर्यटन महोत्सव समिति के तत्वावधान में पंचगाई रैथल समेत नटीण, बंद्राणी, क्यार्क, भटवाड़ी के आराध्य समेश्वर देवता की डोली और पांच पांडवों के पश्वा दयारा बुग्याल पहुंचे। इसके साथ ही जिले के अन्य स्थानों से भी लोगों ने दयारा बुग्याल की यात्रा की। जहां पहले पांच पांडवों के पश्वा अवतरित हुए। इसके बाद समेश्वर भगवान की डोली के साथ उनके पश्वा पश्वा भी अवतरित हुए।

लोककथाओं का मानना ​​है कि समेश्वर देवता ने अंढूड़ी उत्सव के दौरान लघु कुल्हाड़ी पर चलकर मेलार्थियों को आशीर्वाद दिया था। इसके बाद, बुग्याल में स्थित छानियों में एकत्रित दूध दही और मक्खन को वन देवताओं समेत स्थानीय देवी देवताओं को भोग चढ़ाया गया। राधा और कृष्ण ने एक ही समय में मक्खन की हांडी तोड़ी, जिससे मक्खन महोत्सव उत्सव की शुरुआत हुई। होली खेलने के लिए लोगों ने गुलाल का उपयोग करने के बजाय एक-दूसरे को दूध और मक्खन से रंगा।

दूध और मक्खन की होली के बाद, महिलाओं ने पारंपरिक रूप से तैयार होकर उसी समय राधा-कृष्ण की जोड़ी के साथ रासो तांदी नृत्य किया। दूसरी ओर, पुरुषों ने इसमें बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया थ। यह उत्सव अत्यधिक पौराणिक है। इस अवसर पर ग्रामीण जब अपने पशुओं को बुग्यालों से अपने घरों में वापस लाते हैं तो ग्रामीण दूध, दही, मक्खन को वन और स्थानीय देवताओं को चढ़ाकर आशीर्वाद लेते हैं.

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