देहरादून। देहरादून का रेंजर्स ग्राउंड इस बार सिर्फ एक मैदान नहीं, बल्कि भारत और नेपाल की दोस्ती की एक रंगीन तस्वीर बन गया है। 21 मार्च 2025 को जब इंडो-नेपाल अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला और पर्यटन महोत्सव का शुभारंभ हुआ, तो हर ओर उल्लास, उमंग और व्यापार की नई संभावनाओं का संचार हो गया।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जब रिबन काटा, तो तालियों की गूंज नेपाल की पहाड़ियों तक सुनाई दी। इस मेले में नेपाल के 50 और भारत के 150 उद्यमियों ने अपने स्टॉल लगाए, जहाँ रंग-बिरंगे हस्तशिल्प, सुगंधित मसाले, पारंपरिक परिधान और आधुनिक तकनीक का अनूठा संगम देखने को मिला।

भारत-नेपाल के रिश्तों की मजबूत डोर

भारत और नेपाल का रिश्ता सदियों पुराना है—धार्मिक, सांस्कृतिक और भावनात्मक रूप से गहरे जुड़े हुए। इस मेले ने उस कड़ी को और मजबूत कर दिया। नेपाल से आए काष्ठकला विशेषज्ञों ने जहाँ अपने सुंदर हस्तशिल्प प्रदर्शित किए, वहीं उत्तराखंड के कारीगरों ने अपने परंपरागत ऊनी वस्त्रों से सबका मन मोह लिया।

मुख्यमंत्री धामी ने अपने भाषण में कहा, “भारत और नेपाल का यह मेल-जोल व्यापार तक ही सीमित नहीं है, यह दोनों देशों के सांस्कृतिक रिश्तों का उत्सव है।” उनकी बात को नेपाल से आए मेयर भीम सिंह के शब्दों ने और बल दिया, “हमारे पर्वतों की ऊँचाइयों की तरह यह संबंध भी अडिग रहेगा।”

संस्कृति, संगीत और स्वाद का संगम

इस मेले में व्यापार के अलावा सांस्कृतिक झलकियां भी खूब देखने को मिलीं। नेपाल के पारंपरिक नृत्य और उत्तराखंड की लोकधुनों ने माहौल में रौनक भर दी। देहरादून की सड़कों पर घूमते नेपाली व्यंजन मोमो और थुक्पा की खुशबू लोगों को अपनी ओर खींच रही थी, वहीं भारत के जायकेदार पकवानों का स्वाद भी नेपाल से आए मेहमानों के लिए किसी तोहफे से कम नहीं था।

व्यापार से पर्यटन तक—नई संभावनाओं के द्वार

यह मेला सिर्फ व्यापार के लिए नहीं, बल्कि दोनों देशों के पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए भी एक महत्वपूर्ण पहल थी। हिमालय की गोद में बसे नेपाल के पर्यटन स्थलों को बढ़ावा देने के लिए विशेष सत्र आयोजित किए गए, जहाँ नेपाल के पर्यटन बोर्ड ने वहां की खूबसूरती और आकर्षण के बारे में बताया। वहीं, उत्तराखंड के हसीन वादियों की भी चर्चा हुई, जिससे दोनों देशों के पर्यटकों को नए अनुभव मिल सकें।

अगली बार फिर मिलने के वादे के साथ…

तीन दिनों तक चले इस मेले का समापन उत्साह के उसी स्तर पर हुआ, जिस पर इसकी शुरुआत हुई थी। व्यापारियों ने नए समझौते किए, कलाकारों ने दोस्ती के नए पुल बनाए, और देहरादून ने एक बार फिर भारत-नेपाल संबंधों को संजोने का गवाह बना।

जाते-जाते दोनों देशों के प्रतिनिधियों ने वादा किया—”अगली बार फिर मिलेंगे, और इस दोस्ती की कहानी को और आगे बढ़ाएंगे!”