जोशीमठ में आई आपदा से प्रभावित लोगों की मदद के लिए सरकार कई मोर्चों पर काम कर रही है। पुनर्वास, विस्थापन और सहायता पैकेज को लेकर इसमें सबसे बड़ा मुद्दा है। इन्हीं बातों को लेकर स्थानीय जनता बंटी हुई है। ऐसी परिस्थिति में आम सहमति बनाने के लिए सरकार को बहुत मेहनत करनी पड़ रही है।

इस संबंध में सरकार ने जिला प्रशासन और शासन स्तर पर दो समितियों का गठन किया है। जिला स्तर पर गठित कमेटी में स्थानीय रसूखदारों को भी शामिल किया गया है। ताकि उनके सुझावों को शामिल कर एक ठोस और प्रभावी नीति तैयार की जा सके।

आस-पास स्थानीय लोगों की चाहत, आवास और दुकान आसपास ही मिले
जोशीमठ में कई तरह के विस्थापन और पुनर्वास किए जाने हैं। पहली श्रेणी उन लोगों की है, जो जोशीमठ के मूल निवासी हैं। ये लोग किसी भी कीमत पर जोशीमठ से दूर नहीं रहना चाहते हैं. उनकी मांग है कि उन्हें जोशीमठ के आसपास आवास, दुकान या कृषि भूमि दी जाए। इनमें से ज्यादातर लोग ऐसे हैं जिनका कारोबार पूरी तरह से धार्मिक, प्राकृतिक और साहसिक पर्यटन पर आधारित है। बद्रीनाथ यात्रा, हेमकुंड साहिब, फूलों की घाटी और औली तीन प्रमुख केंद्र हैं जिनसे लोग दूर नहीं रहना चाहते।

आसपास के गांवों से आए लोग भी ज्यादा दूर नहीं जाना चाहते
आसपास के गांवों से आकर जोशीमठ में बसे लोग भी ज्यादा दूर नहीं जाना चाहते। उनकी पहली मांग भी जोशीमठ के आसपास ही बसाने की है। ये वो लोग हैं जो सालों पहले अपने गांव से जोशीमठ आए और छोटा-मोटा कारोबार शुरू किया और बाद में यहीं बस गए। ऐसे लोगों के लिए सरकार ने पीपलकोटी और ढाक के आसपास कुछ जमीन चिन्हित की थी, लेकिन इन पर भी अब तक सहमति नहीं बन पाई है. ऐसे लोग बदरीनाथ हाईवे के आसपास आवास और दुकान के लिए जमीन चाहते हैं।

खाली पड़ी जमीन पर सैकड़ों लोग बसे हुए हैं, अब मुआवजे में भी दिक्कत आ रही है
आपदा प्रभावित लोगों की एक श्रेणी ऐसी भी है जो जोशीमठ में 50-60 वर्षों से अधिक समय से बसे हुए हैं लेकिन जमीन उनके नाम पर नहीं है। उनके पास मकान हैं, दुकानें हैं लेकिन मालिकाना हक नहीं है। बेनाप की जमीन पर रहने वाले लोग वर्षों से खेती करते आ रहे हैं। लेकिन 1958-64 के बाद पूरे प्रदेश में जमीन बंदोबस्त नहीं हो सका है। इस कारण जोशीमठ के ऐसे सभी लोगों का नाम खसरा खतौनी में दर्ज नहीं है। ऐसे लोगों के लिए भी जिलाधिकारी स्तर पर प्रयास शुरू कर दिए गए हैं।

बाहर से आने वाले लोग एकमुश्त समाधान चाहते हैं
कुछ लोग बाहर से आकर जोशीमठ में होटल आदि व्यवसाय से जुड़े हैं। ये लोग जोशीमठ के मूल निवासी नहीं हैं लेकिन अब व्यवसाय के चलते पूरी तरह से जोशीमठ पर निर्भर हैं। ऐसे ज्यादातर लोग एकमुश्त निपटारे के पक्ष में हैं। ताकि वह सरकार से राहत पैकेज लेकर अपनी इच्छानुसार दूसरी जगह व्यवसाय शुरू कर सके।

लोग हाईवे के किनारे जमीन चाहते हैं
जोशीमठ में होटल व्यवसाय से जुड़े ज्यादातर लोग बद्रीनाथ हाईवे के किनारे जमीन चाहते हैं, ताकि वे फिर से कारोबार शुरू कर सकें. स्थानीय जिला प्रशासन का कहना है कि हाईवे के किनारे सभी को जमीन देना संभव नहीं है लेकिन संभावनाओं पर विचार किया जा रहा है.

जोशीमठ आपदा प्रभावित लोगों की विस्थापन, पुनर्वास और राहत पैकेज को लेकर अलग-अलग मांगें हैं। हम सभी का पक्ष सुनकर आम सहमति बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इसके लिए स्थानीय जनप्रतिनिधियों के अलावा आपदा प्रभावित लोगों को भी समिति में शामिल किया गया है। जिनका नाम दर्ज नहीं है उनके लिए भी समाधान निकाला जा रहा है। – हिमांशु खुराना, जिलाधिकारी, चमोली

साइबर अपराध को रोकने और उत्तराखंड को नशा मुक्त बनाने के लिए पुलिस व्यवस्था के तहत पुलिस थानों और चौकियों का होना जरूरी है । – सुबोध उनियाल