मसूरी : पर्वतों की रानी मसूरी से आठ किलोमीटर की दूरी पर साढ़े सात हजार फुट की ऊंचाई पर दुधली भद्राज पहाड़ी पर स्थित उत्तराखंड के इकलौते भगवान बलराम के मंदिर में लगने वाला दो दिवसीय मेला पारंपरिक रीति रिवाज एवं देव दर्शन के साथ संपन्न हो गया है ।

दो दिनों तक चले मेले में जौनसार, जौनपुर, मसूरी, विकासनगर और देहरादून सहित आसपास के क्षेत्रों से हजारों श्रद्धालुओं ने भगवान बलभद्र के दर्शन किए और प्रसाद लिया. वहीं मेले में आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रमों के तहत पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ लोकनृत्य की प्रस्तुति दी गई और लोक गायक मनोज सागर के गीतों पर लोगों ने जमकर डांस किया.

हर साल 16 और 17 तारीख को लगने वाले भद्राज मेले में भगवान बलराम के दर्शन करने के लिए मसूरी, देहरादून, जौनसार, जौनपुर, विकास नगर, हिमाचल प्रदेश समेत आसपास के इलाकों से भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं और दूध, मक्खन और घी आदि से भगवान बलराम का अभिषेक करके वह अपने परिवार और पशुओं की रक्षा के लिए प्रार्थना करते हैं। मौसम साफ होने के कारण मेले में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे। 

प्रात:काल में स्नान कर मंदिर में भगवान बलराम की मूर्ति का श्रृंगार किया गया और फिर पारंपरिक वाद्य यंत्रों से उनकी पूजा की गई। इस अवसर पर कई भक्तों पर देवी-देवताओं ने अवतार लिया। पूजा के बाद दर्शन के लिए खोला गया मंदिर, दर्शन के लिए लोगों को काफी देर तक लाइन में लगना पड़ा। मेले में ज्यादातर लोग पैदल ही पहुंचे। इस दौरान यहां पहुंचे श्रद्धालुओं ने जमकर खरीदारी भी की।

मंदिर समिति के अध्यक्ष राजेश नौटियाल ने कहा कि भद्रराज मंदिर भगवान बलराम का प्राचीन मंदिर है, जिसकी स्थानीय लोग बड़ी श्रद्धा से पूजा करते हैं। भगवान बलराम, जिन्हें स्थानीय भाषा में भद्राज कहा जाता है, पशु धन की रक्षा और समृद्धि के देवता माने जाते हैं, इसलिए उन्हें दूध, दही, मक्खन, घी सहित रोटी का प्रसाद चढ़ाया जाता है।

ऐसा माना जाता है कि पछुवादून और जौनपुर के सिलगांव पट्टी के ग्रामीण अपने मवेशियों को दुधली पहाड़ी पर चौमासे ले जाते थे, लेकिन एक राक्षस पहाड़ी पर उनके जानवरों को खा जाता था। जिस पर ग्रामीण मदद के लिए भगवान बलराम के पास पहुंचे, तब बलराम ने पहाड़ी पर जाकर राक्षस का वध किया था, जिसके बाद ग्रामीणों ने यहां मंदिर बनाकर भगवान बलराम की पूजा शुरू कर दी, जो आज भी जारी है। ऐसा माना जाता है कि भगवान बलभद्र आज भी उनके पशुओं की रक्षा करते हैं।