मसूरी, पहाड़ न्यूज टीम

देवभूमि हिमालय की प्राथमिक सीढ़ी मसूरी अपनी सुंदरता और अद्वितीय प्राकृतिक सुरम्यता के लिए विश्व प्रसिद्ध है। आजकल मसूरी एक और कारण से चर्चा में बना हुआ है, वह है यहां का विस्तार करने वाला दिव्य आध्यात्मिक स्थान भगवान शंकर आश्रम। मसूरी के 200 साल के इतिहास में पहली बार दुर्लभ फूल ब्रह्मकमल इस आश्रम में लगातार खिल रहा है। इन चमत्कारिक फूलों को देखने के लिए भक्त जीवन भर इंतजार करते हैं और इससे भी ज्यादा आश्चर्य की बात यह है कि ये फूल ज्यादातर विशेष शुभ तिथियों पर खिलते हैं।

आर्यम इंटरनेशनल फाउंडेशन के तत्वावधान में संचालित भगवान शंकर आश्रम अपनी कई आध्यात्मिक और धार्मिक गतिविधियों के लिए जाना जाता है। इसके संस्थापक प्रमुख परम प्रज्ञा जगतगुरु प्रोफेसर पुष्पेंद्र कुमार आर्यम ने इस बारे में बताया कि हमने यहां आश्रम का उद्घाटन वर्ष 2016 में किया था और आनंद वाटिका के नाम से एक परियोजना शुरू की गई थी. इस उद्यान में धार्मिक, आध्यात्मिक और ज्योतिष की दृष्टि से सैकड़ों पौधे रोपे गए, जिनमें से ब्रह्मकमल के दो पौधे भी लगाए गए। इसी क्रम में इस वर्ष ज्येष्ठ मास की चतुर्थी को तीन, जबकि पंचमी यानी भगवान शिव पार्वती के विवाह के दिन आठ, इस प्रकार कुल 11 ब्रह्म कमल खिले हैं। लेकिन यह एकमात्र फूल है जिसकी पूजा की जाती है।
आचार्य श्री आर्यम के अनुसार देवताओं का प्रिय यह फूल अपने आप में अनूठा और दुर्लभ है। इस फूल को खिलते हुए देखने का सौभाग्य केवल भाग्यशाली लोगों को ही मिलता है। यह उत्तराखंड का राजकीय फूल और हिमालय के फूलों का सम्राट है। उत्तराखंड में इसे ‘कौलपद्म’ के नाम से भी जाना जाता है। उत्तराखंड में ब्रह्मकमल की 24 प्रजातियां पाई जाती हैं। जबकि इसके जैसी 210 प्रजातियां पूरी दुनिया में पाई जाती हैं। आम तौर पर मैदानी इलाकों में खिलने वाले कई फूल, जो इससे बहुत मिलते-जुलते हैं, गलती से असली ब्रह्म कमल मान लिए जाते हैं। इस फूल की पहचान उनके आकार और सुगंध के आधार पर की जाती है। वास्तविक ब्रह्म कमल में ब्रह्मा का रथ और सुदर्शन चक्र स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। इतना ही नहीं उसमें से कांच का चमचमाता पानी लगातार टपकता रहता है। चक्र पराग छतरियों से घिरा हुआ है। अंदर से पुष्प की आभा चमकदार स्वर्ण जैसी होती है। यह फूल काफी ऊंचाई पर खिलता है। अभी तक यह फूल साढ़े तेरह हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं में ही खिलता रहा है। केदार घाटी के ऊपर पिंडारी ग्लेशियर के पास फूलों की घाटी और कैलास मानसरोवर मार्ग पर स्थित ब्रह्मक्षेत्र में इसके खिलने का उल्लेख मिलता है।

मसूरी की ऊंचाई 6578 फीट है। लगभग आधी ऊंचाई पर मसूरी में ब्रह्म कमल खिलने के कारण भगवान शंकर की शरण इन दिनों चर्चा का विषय बन गई है। इस फूल के खिलने का समय जुलाई से सितंबर तक होता है, लेकिन जून के महीने से लगातार फूलों का खिलना अपने आप में किसी चमत्कार से कम नहीं है।
गुरुदेव श्री आर्यम जी महाराज ने बताया कि इस फूल का उल्लेख वेदों, पुराणों, उपनिषदों और हमारे प्राच्य धार्मिक ग्रंथों में मिलता है।
वेदों में उल्लेख है कि इंद्राणी ने अपने पति, देवता इंद्र को इस फूल को राखी के रूप में बांधा था। इतना ही नहीं रामायण काल ​​में जिस पर्वत से संजीवनी जड़ी बूटी प्राप्त हुई थी, उसकी सुगन्ध से भगवान हनुमान के नशे में होने की भी घटना है। समय के साथ, सुषेण संजीवनी के साथ वैधि पहुंच जाता है। इस फूल का वर्णन महाभारत के वन पर्व में मिलता है, जब द्रौपदी इस फूल पर जोर देती है, इसे पूरा करने के लिए भीम हिमालय की ओर चल पड़ते हैं, जहां उनकी मुलाकात हनुमान जी से होती है। और उसे अपनी पूंछ एक तरफ मोड़ने के लिए कहने से भीम के अहंकार को मारने का प्रसंग आता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार पांडवों ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए केदारनाथ में ब्रह्म कमल अर्पित किया था। केदारनाथ में आज भी इस फूल को चढ़ाने और प्रसाद के रूप में बांटने की परंपरा है। इस फूल का जीवन कुछ ही घंटों का होता है और यह फूल अपनी निश्चित अवधि में साल में एक बार ही खिलता है। मां पार्वती को यह फूल सबसे ज्यादा पसंद है। यही कारण है कि नंदा पारिजात यात्रा में इस फूल से आदि शक्ति की पूजा करने का विधान है।

श्री आर्यम के अनुसार ब्रह्मकमल की अनेक प्रजातियाँ भारत में पाई जाती हैं। वानस्पतिक विज्ञान में इसका वैज्ञानिक नाम सौसुरिया ओबवल्लाटा और एपिफिलम ऑक्सीपेटलम है। दुर्लभतम फूल की आकृति भी अत्यंत दिव्य होती है। इसमें ब्रह्म की वास्तविक उपस्थिति का अनुभव होता है। इस झरने से पानी की बूंदों को अमृत कण माना जाता है। आयुर्वेद में सौ से अधिक रोगों में इस फूल के प्रयोग का सुझाव दिया गया है। जिसमें कैंसर जैसी बीमारियां भी आती हैं। इसे खिलते हुए देखना एक सपने के समान है, आमतौर पर सामान्य लोग इसे खिलने या मुरझाने के बाद ही देख पाते हैं। इसे तोड़ने, देखने और छूने का पूरा नियम शिवसूत्र में बताया गया है। पूर्ण सात्त्विक और शुद्ध मन रखने वालों को ही इसका फल मिलने का उल्लेख मिलता है। जिन घरों में शराब और अंडे का इस्तेमाल होता है, वहां भी इस फूल के दर्शन करना मना है।
श्री आर्यम जी महाराज ने इस फूल को समस्त मानव जाति के कल्याण और सुरक्षा के लिए वरदान स्वरूप मसूरी क्षेत्र को समर्पित किया है।