रुद्रप्रयाग : धार्मिक एवं पर्यटन के क्षेत्र में जिले का विशेष महत्व है। जिले में जहां विश्व प्रसिद्ध केदारनाथ धाम के अलावा दूसरा केदार मद्महेश्वर और तीसरा केदार तुंगनाथ स्थित है, मिनी स्विट्जरलैंड के रूप में प्रसिद्ध पर्यटन स्थल चोपता भी है। इतना ही नहीं जिला मुख्यालय रुद्रप्रयाग में बदरीनाथ धाम से आने वाली अलकनंदा नदी और केदारनाथ धाम से आने वाली मंदाकिनी नदी का संगम भी है। इसलिए रुद्रप्रयाग पंच प्रयागों में से एक है।

रुद्रप्रयाग के धार्मिक स्थलों में गर्मियों में लाखों तीर्थयात्री आते हैं और सर्दियों में भी यहां पर्यटकों की काफी भीड़ रहती है। यहां आने वाले श्रद्धालुओं और पर्यटकों को गंगा आरती, योग, ध्यान आदि कराने के उद्देश्य से अलकनंदा और मंदाकिनी नदियों के तट पर बनाए गए अलकनंदा और मंदाकिनी नदी के घाट खंडहर में तब्दील हो गए हैं. इन घाटों का निर्माण 2017 में ही हो गया था, लेकिन पांच साल के भीतर ही ये घाट दुर्गम हो गए हैं। रुद्रप्रयाग जिला मुख्यालय में अलकनंदा नदी के तट पर और अलकनंदा और मंदाकिनी के संगम पर नमामि गंगे परियोजना के तहत बने घाट मलबे के नीचे दबे हुए हैं.

चार महीने तक ये घाट नदियों के बढ़ते जल स्तर के कारण जलमग्न रहते हैं और बाकी समय ये घाट मलबे में दबे रहते हैं। घाट बनाने का मुख्य उद्देश्य यह था कि यहां आने वाले पर्यटक और यात्री इन घाटों की ओर रुख करें और योग और साधना को बढ़ावा दिया जा सके। लेकिन घाटों की देखरेख के अभाव में कोई भी इन घाटों की ओर रुख नहीं कर रहा है। जहां इन घाटों से नदियों का सौंदर्य बढ़ना था, वहीं इन घाटों से नदियों की सुंदरता धूमिल हो रही है। ये घाट मलबे से ढके दूर से ही दिखाई देते हैं।

जिलाधिकारी मयूर दीक्षित (Rudraprayag DM Mayur Dixit) ने कहा कि मलबा आने के कारण इन घाटों का इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है. नगर पालिका के सहयोग से कार्य योजना तैयार की जा रही है कि घाटों की सफाई कैसे की जाए और बारिश में बहने वाली रेत का उपयोग कैसे किया जाए।