देहरादून, पहाड़ न्यूज टीम

देशभर में आज ईद का त्योहार धूमधाम से मनाया जा रहा है. बकरीद पर लोगों ने देहरादून में मस्जिद में और ईदगाह में भी नमाज अदा की और खुदा से अमन और शांति की दुआ मांगी . मस्जिदों में सुबह छह बजे से ईद की नमाज अदा की गई। इस दौरान मस्जिदों में काफी भीड़ देखी गई। हालांकि मौसम खराब था, लेकिन नमाज के दौरान बारिश थम गई। नमाज के बाद लोगों ने गले मिलकर ईद की बधाई दी।

आपको बता दें कि इस्लाम के अनुसार साल में दो बार ईद मनाई जाती है। एक ईद उल जुहा और दूसरी ईद उल फितर। ईद उल फितर को मीठी ईद के नाम से भी जाना जाता है। यह रमजान के अंत में मनाया जाता है। बकरीद मीठी ईद के करीब 70 दिन बाद मनाई जाती है। मस्जिदों में नमाज अदा करने के बाद कुर्बानी देते हैं। इस्लाम के प्रमुख त्योहारों में से एक बकरीद को ईद उल अजहा भी कहा जाता है।

बारिश के बीच ईद की नमाज : उधर ईद-उल-अजहा के पर्व पर ईदगाह में हल्की बूंदाबांदी के बीच देहरादून में आज ईद की नमाज अदा की गई. वहीं ईदगाह में मुस्लिम समाज के हजारों लोगों ने ईद की नमाज अदा की। इस दौरान ईदगाह में सुरक्षा के मद्देनजर पुलिस भी मौजूद रही।

आज बहुत गर्मी पड़ रही है. लेकिन अल्लाह ने मौसम को बहुत सुहाना बना दिया है। इसके साथ ही मस्जिदों और ईदगाहों में बड़े आराम से नमाज अदा की गई। वहीं नमाज के वक्त ईदगाह के पास सुरक्षा को देखते हुए पुलिस बल भी मौजूद रहा। इस दौरान उन्होंने कुर्बानी को लेकर सभी से अपील भी की है कि कुर्बानी करते समय साफ-सफाई का ध्यान रखें.

इस तरह शुरू हुई कुर्बानी

इस्लाम में मान्यता के अनुसार अंतिम पैगंबर हजरत मोहम्मद थे। इस्लाम ने हज़रत मोहम्मद के समय में पूर्ण रूप धारण किया और इस्लाम के अनुयायियों द्वारा पालन की जाने वाली सभी परंपराएं पैगंबर मुहम्मद के समय से हैं। लेकिन इनसे पहले भी बड़ी संख्या में पैगम्बर आए और इस्लाम का प्रचार-प्रसार किया। हजरत इब्राहिम कुल 1 लाख 24 हजार पैगम्बरों में से एक थे। इसी काल से कुर्बानी की प्रक्रिया प्रारंभ हुई। हज़रत इब्राहिम 80 साल की उम्र में पिता बने। उनके बेटे का नाम इस्माइल था। हजरत इब्राहिम अपने बेटे से बहुत प्यार करते थे। एक दिन हजरत इब्राहिम ने अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी देने का सपना देखा। इस्लामी जानकारों का कहना है कि यह अल्लाह का हुक्म था और हज़रत इब्राहिम ने अपने प्यारे बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया। उसने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली और अपने बेटे इस्माइल की गर्दन पर चाकू रख दिया। लेकिन इस्माइल की जगह एक बकरा आया। हजरत इब्राहिम ने जब आंखें मूंद लीं तो उनका बेटा इस्माइल सुरक्षित खड़ा था।

उनके कार्यकाल में ही नमाज की शुरुआत हुई थी।

कहा जाता है कि ये तो बस एक परीक्षा थी और हज़रत इब्राहिम अल्लाह के हुक्म के प्रति अपनी वफादारी दिखाने के लिए अपने बेटे की कुर्बानी देने को तैयार हो गए थे। इस प्रकार पशु बलि की यह परंपरा शुरू हुई। हजरत इब्राहिम के समय में कुर्बानी शुरू हुई और पैगंबर मुहम्मद के समय में ईदगाह में नमाज अदा करने की प्रक्रिया शुरू हुई। पैगंबर मोहम्मद के नबी बनने के लगभग डेढ़ दशक बाद इस पद्धति को अपनाया गया था। उस समय पैगंबर मोहम्मद मदीना आए थे।