कोटद्वार   , PAHAAD NEWS TEAM

मुख्यमंत्री की सहमति की मोहर लगने के बाद, कोटद्वार नगर निगम का नाम बदलकर कण्वनगरी कोटद्वार कर दिया गया। हालाँकि, क्षेत्र के प्रत्येक व्यक्ति के मन में एक ही सवाल उठ रहा है कि क्या नाम बदलने के बाद गुमनामी का खामियाजा भुगत रहे कण्वाश्रम की छवि बदल जाएगी। वास्तव में, आज तक राज्य के गठन के बाद से, कण्वाश्रम को विश्व पटल पर लाने के लिए राजनीतिक मंचों से घोषणाएं तो तमाम हुई,, लेकिन इन घोषणाओं को लागू नहीं किया जा सका।

कण्वाश्रम को राष्ट्रीय धरोहर बनाने की घोषणा तो कई बार की गई, लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि एक समय में अध्यात्म और ज्ञान के विज्ञान के विश्व प्रसिद्ध केंद्र कण्वाश्रम में अभी भी सन्नाटा पसरा हुआ है । देश ही नहीं, राज्य की सरकार भी मालिनी नदी के किनारे स्थित कण्वाश्रम के गौरवशाली इतिहास से अनभिज्ञ लगती है। क्षेत्रीय लोगों की मांग पर, सरकार ने कोटद्वार का नाम बदलकर कण्वनगरी कोटद्वार तो कर दिया, लेकिन सवाल यह है कि क्या नाम बदल देने से कण्वाश्रम के दिन बहुर पाएंगे? यह बनी विकास की योजनाएँ

सरकार एक तरफ दावा करती है कि कण्वाश्रम को दुनिया के मंच पर लाया जाएगा, लेकिन योजनाएं इस तरह से बनाई जाती हैं कि देश और विदेश तो छोड़िए, यहां तक कि कोटद्वार क्षेत्र के लोग भी कण्वाश्रम में जाना पसंद नहीं करते हैं। कांग्रेस शासन के दौरान मालन नदी के तट पर एक झील के निर्माण के लिए कण्वाश्रम के विकास की योजना बनाई गई थी। इसके लिए 3.074 हेक्टेयर वन भूमि सिंचाई विभाग को हस्तांतरित की गई। झील के आकार लेने से पहले, अधिकारियों ने समझा कि झील बारिश के मौसम में मालन नदी के तेज बहाव को नहीं झेल पाएगी । 2018 में, पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने कण्वाश्रम में पर्यटन विकास के लिए कई योजनाएँ बनाकर कण्वाश्रम की तस्वीर संवारने का प्रयास किया, लेकिन मामला अदालत में पहुँच गया और निर्माण कार्य रोक दिया गया। दरअसल, जिस जगह पर निर्माण कार्य होना था, वह मालन नदी के दो सौ मीटर के दायरे में था। कण्वाश्रम गुमनामी के अंधेरे में खोया हुआ है और सरकार नाम बदल खुद की पीठ थपथपा रही है।

संदेश: 5 कोटपी |

कण्वाश्रम में विकास के नाम पर मालन नदी के किनारे बनने वाली झील की अधूरी पड़ी दीवार