देहरादून, PAHAAD NEWS TEAM

वोटिंग के नतीजे आने में अभी 15 दिन बाकी हैं, लेकिन कांग्रेस में सीएम का मुद्दा एक बार फिर सामने आ गया. पूर्व सीएम हरीश रावत ने मंगलवार को साफ कहा कि हरीश रावत या तो सीएम बन सकते हैं या फिर घर में बैठ सकते हैं. इसके अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। ज्ञात हो कि उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया है। हालांकि रावत खेमा शुरू से ही रावत को मुख्यमंत्री बनाने की वकालत करता रहा है.

रावत का मीडिया से बातचीत का वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. रावत के मुताबिक अगर मैं हूं तो मैं अपनी सोच के मुताबिक उत्तराखंड का विकास करूंगा। यह जरूर है कि मैं सभी की सोच को शामिल करूंगा। अभी सिर्फ पद के लिए अपनी सोच से समझौता करने का समय नहीं है। रावत ने कहा कि अब मेरी उम्र इतनी नहीं है कि मैं ऐसा कहकर कुछ करूं। साफ है कि हरीश रावत या तो मुख्यमंत्रीबनेगे या घर बैठेंगे । मैं पद के लिए सोच के साथ समझौता नहीं कर सकता।

मालूम हो कि मतदान के दिन भी रावत ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया पेज पर एक वीडियो जारी कर जनता से मतदान करने की अपील की थी. इसमें उन्होंने कहा कि आप मुझे सीएम के तौर पर देखना चाहते हैं। फिर घर से बाहर आकर वोट करें और कांग्रेस को बहुमत से विजयी बनाएं।

रावत खेमे ने कहा- रावत के अलावा कोई नहीं

प्रदेश उपाध्यक्ष और पूर्व सीएम हरीश रावत के मुख्य प्रवक्ता सुरेंद्र कुमार ने रावत के बयान की पुष्टि की. कहा कि प्रदेश की जनता रावत को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहती है. इस चुनाव में ही नहीं अब तक हुए हर चुनाव में रावत के नाम पर वोट डाले गए हैं. रावत को 2002 में ही मुख्यमंत्री बना देना चाहिए था। रावत कुछ दिन पहले भी खुद को सीएम बनाने की बात कह चुके हैं और अब एक बार फिर उन्होंने लोगों की भावनाओं को सामने रखा है.

रावत की इच्छा पर प्रभारी प्रीतम में मतभेद

कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव और विपक्ष के नेता प्रीतम सिंह की राय रावत की मुख्यमंत्री पद की इच्छा से मेल नहीं खाती. संपर्क करने पर प्रभारी ने कहा कि अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। मैं अभी इस पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता। वहीं प्रीतम रावत पर सीधे तौर पर कोई टिप्पणी करने से बचते रहे। लेकिन जोर देकर कहा कि राष्ट्रीय नेतृत्व ने सामूहिक नेतृत्व के साथ मौजूदा चुनाव लड़ा। 10 मार्च को पूर्ण बहुमत प्राप्त करने के बाद राष्ट्रीय नेतृत्व और विधायक दल सर्वसम्मति से जो भी निर्णय लेंगे, वह मान्य होगा। अब कुछ भी कहने का कोई मतलब नहीं है।