हरिद्वार , PAHAAD NEWS TEAM

वर्ष 2010 के कुंभ के दौरान भी चैत्र प्रतिपदा के स्नान के दौरान हरिद्वार पूरी तरह पैक था। घाटों पर पांव रखने तक जगह नहीं मिल रही थी। यहां तक कि 2016 के अर्द्धकुंभ के दौरान भी घाट श्रद्धालुओं से पटे नजर आते थे। लेकिन, कोरोना की दूसरी लहर का असर देखिए कि इस बार श्रद्धालु कुंभनगरी का रुख करने से परहेज कर रहे हैं। सोमवार को हुए कुंभ के पहले स्नान के दौरान भी ऐसी ही बानगी देखने को मिली। हालांकि, इस सबके बावजूद आस्था के प्रवाह में गंगा की लहरों के समान रवानी है। कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए कुंभनगरी पहुंचने वाले श्रद्धालु उल्लास के वातावरण में डुबकी लगा रहे हैं और विश्वास का भाव लिए लौट रहे हैं। मंगलवार को भी हरकी पैड़ी समेत आसपास के गंगा घाटों पर यही दृश्य साकार हो रहा था।

सनातनी परंपरा में नववर्ष के स्वागत की अपनी रीत रही है। लोग भारतीय नववर्ष का स्वागत हुड़दंग के साथ नहीं, बल्कि गंगा आदि नदियों में आस्था की डुबकी लगाकर पूजन-अर्चना के साथ करते हैं। यह सृष्टि के आरंभ का दिन भी है और शक्ति की आराधना का भी, क्योंकि इसी दिन से चैत्र (वासंतिक) नवरात्र का भी शुभारंभ होता है। नवरात्र को कालचक्र के कारण प्रकृति में आए बदलावों के अनुरूप शरीर को ढालने का अवसर माना गया है। इसलिए यही रंग चैत्र प्रतिपदा पर चारों दिशाओं में नजर आते हैं।

खास बात यह कि मंगलवार दोपहर बाद से ही सूर्य का मेष राशि में प्रवेश हो चुका है, यानी विषुवत संक्राति शुरू हो चुकी है। कुंभकाल में इस संक्रांति को करोड़ों गुणा फल देने वाला माना गया है। बुधवार को कुंभ के मुख्य स्नान पर अमृत योग पड़ने के बावजूद आम श्रद्धालु दूसरे शाही स्नान के चलते हरकी पैड़ी ब्रह्मकुंड पर डुबकी नहीं लगा पाएंगे। इसलिए उन्होंने संवत्सर प्रतिपदा और विषुवत संक्राति के संयोग पर ही अपनी मेष संक्राति के स्नान की अभिलाषा को पूर्ण कर लिया।

मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने मंगलवार को कहा कि सरकार ने सफलतापूर्वक “सुरक्षित और सफल दूसरा शाही स्नान” आयोजित किया है और बुधवार को भी ऐसा ही होगा।