हल्द्वानी , PAHAAD NEWS TEAM

हर चौकी में कम से कम दो दरोगा होते हैं. कानून-व्यवस्था बनाए रखने के साथ-साथ लिखा-पढ़त के लिहाज से भी महकमे में यह पद और महत्वपूर्ण है, लेकिन कोरोना की दो लहरों में मेडिकल कॉलेज चौकी प्रभारी मनवर सिंह बिष्ट ने खाकी के साथ अकेले दम पर मानवता का कर्तव्य निभाया. चौकी में उनके अलावा कोई सब-इंस्पेक्टर नहीं है। इसलिए कुमाऊं के सबसे बड़े कोविड अस्पताल एसटीएच समेत तीन अन्य सेंटरों में सुरक्षा को लेकर खुद ही दौड़ते रहे । खाकी के कर्तव्य के साथ मनवर ने मानवता का धर्म भी निभाया। 18 कोरोना मरीजों की मौत के बाद जब उनके चाहने वालों ने संक्रमण या अन्य कारणों के डर से अपनों ने हाथ पीछे खींच लिए तो मनवर ने खुद घाट पर पहुंचकर उन्हें मुखाग्नि भी दिलवाई।

मूल रूप से अल्मोड़ा जिले की सल्ट तहसील के रणथमल गांव निवासी दारोगा मनवर सिंह बिष्ट ने 20 फरवरी 2020 को मेडिकल कॉलेज चौकी प्रभारी की जिम्मेदारी संभाली थी. पिछले मार्च में ही कोरोना की पहली लहर का दौर शुरू हुआ था. वहीं इस साल अप्रैल में दूसरी लहर ने सबसे ज्यादा रुलाया . संकट के इन दोनों समय में एसटीएच, एफटीआई अस्थाई कोविड सेंटर व निजी अस्पताल में हंगामे की सूचना पर प्रभारी मनवर को तत्काल मौके पर पहुंचना पड़ता था। कई बार ऐसे हालात पैदा हो गए कि लोगों को कोरोना वार्ड के अंदर जाकर समझाना पड़ा । खुद की जान को भी खतरा था। लेकिन मनवर ने हर बार उत्तराखंड पुलिस की दोस्ती, सेवा और सुरक्षा के नारे को मूर्त रूप दिया। वे कोरोना की ड्यूटी के अलावा चेकिंग, चौकी क्षेत्र में सुरक्षा व्यवस्था और अन्य विभागीय कार्यों को लेकर हमेशा गंभीर रहते थे. खाकी के प्रति इसी निष्ठा के कारण उन्हें उनकी सराहनीय सेवा के लिए 15 अगस्त को दून में सम्मानित भी किया गया था ।

भोजन, रक्त और प्लाज्मा भी दिलवाया

एसटीएच में कुमाऊं भर से मरीजों के आने पर तीमारदार भी जुट जाते थे। ऐसे में मनवर ने गरीब परिवार के सदस्यों के लिए खाने और रहने की व्यवस्था भी की. वहीं जब गंभीर मरीजों को ब्लड की जरूरत होती थी या कोरोना संक्रमितों को प्लाज्मा की जरूरत होती थी तो वह ब्लड बैंक, एनजीओ या अन्य लोगों से संपर्क कर किसी की जान बचाने की हर संभव कोशिश करते थे. वहीं, एक संक्रमित व्यक्ति की मौत के बाद जब परिजनों ने पुलिस से अंतिम संस्कार करने की गुहार लगाई तो मनवर खुद लिखित आवेदन लेकर इस जिम्मेदारी को निभाते थे. वहीं दिन-रात रेड जोन में रहने के बावजूद उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी।