देहरादून , PAHAAD NEWS TEAM

उत्तराखंड की राजनीति के शिल्पकार माने जाने वाले पूर्व सीएम हरीश रावत को लगातार दो बार विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. जिससे उनके राजनीतिक भविष्य पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। वहीं पार्टी में अपनी उपेक्षा की वजह से वह इन दिनों आहत नजर आ रहे हैं. जिसके लिए वो सोशल मीडिया के जरिए अपना दर्द बयां करते रहते हैं. आए दिन सुर्खियों में बने रहते हैं।

हरीश रावत ने एक बार फिर सोशल मीडिया के जरिए अपना दर्द बयां किया है। उन्होंने अपने पोस्ट में लिखा कि एक समय था, जब उत्तराखंड के प्रवासियों में कांग्रेस का बड़ा दबदबा था. आज वह दबदबा बीजेपी और आप का हो गया है। दिल्ली स्थित उत्तराखंड प्रवासियों के बीच एक बार फिर कांग्रेस को मजबूत करने की मेरी इच्छा है। वैसे ये विचार हैं, देखें मन और मस्तिष्क क्या कहते हैं? दोनों एक साथ जहां भी कहेंगे, मैं उस दिशा में चलूंगा।

उन्होंने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा कि मेरा स्वास्थ्य और राजनीतिक स्वास्थ्य दोनों ही स्थानांतरण की मांग कर रहे हैं। यानी उत्तराखंड से दिल्ली के लिए प्रस्थान। जब भी दिल्ली जाने की सोचता हूं तो ऐसे कई दोस्त याद आते हैं जिन्होंने 1980 के बाद मेरा साथ दिया और मुझे दिल्ली से मिलवाया।

इसमें कई ऐसे लोग हैं, जिन्होंने मुझे प्रवासी भाइयों का और देश के कर्मचारियों और मजदूर संगठनों का भी चहेता बना दिया. मुझे उसकी बहुत याद आती है। उनमें से कुछ अब हमारे साथ हैं, कुछ नहीं हैं। ललित माखन और रंगराजन कुमार मंगलम के साथ श्रमिक संगठनों में काम शुरू किया। हमारे साथी सांगले साहब, मोटवानी, जयपाल, कृष्णमूर्ति आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन मंगल सिंह नेगी, एमजे खब्बर, डीके यादव आज भी सामाजिक जीवन में सक्रिय हैं.

ऐसे समय में जब कर्मचारी संगठनों में कांग्रेस का प्रभाव लगातार कम होता जा रहा है। मेरा मन बार-बार कह रहा है कि मैं देश भर में सक्रिय अपने पुराने साथियों को एकजुट कर पुराने संगठन का निर्माण करूं। इसी तरह उत्तराखंड के प्रवासी भाइयों में चाहे कुमाऊं हो या गढ़वाल, कई लोगों ने मुझे दिल्ली में रहने वाले गढ़वाली और कुमाऊंनी भाइयों से रामलीलाओं, सांस्कृतिक कार्यक्रमों और कई अन्य सामाजिक कार्यक्रमों के माध्यम से जोड़ा।

ये सभी लोग मुझे ऐसी सभाओं में ले जाते थे। गढ़वाल की जनता से मेरा जुड़ाव बढ़ाने में हमारे तत्कालीन सांसद त्रेपन सिंह नेगी का भी बड़ा योगदान था। मैं सत्ताधारी पार्टी का सांसद था, वह कांग्रेस के खिलाफ थे। राज्य आंदोलन के दिनों में धीरेंद्र प्रताप, हरिपाल रावत समेत कई लोग हमारे साथ रहते थे, उनमें से कुछ अब हमारे बीच नहीं रहे. कई लोग अभी भी सार्वजनिक जीवन में काफी सक्रिय हैं।