धनौल्टी , PAHAAD NEWS TEAM

जौनसार का प्रसिद्ध पौराणिक माघ मरोज पर्व और रवांई क्षेत्र में धूमधाम से मनाया जा रहा है. माघ मास से 14 जनवरी को टिहरी के जौनपुर, उत्तरकाशी के रवांई, देहरादून के जौनसार और आसपास के जौनसार, बावर और पट्टी गोडर क्षेत्र में विधि-विधान के साथ इस उत्सव की शुरुआत हुई है.

मरोज पर्व की तैयारियां ग्रामीणों द्वारा जोर-शोर से की जाती है। इस त्योहार को मनाने के लिए गांव से दूर काम करने वाले लोग भी अपने गांव लौट रहे हैं। लोग पौष माह के अंतिम सप्ताह में मरोज के इस त्योहार की तैयारी शुरू कर देते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार क्षेत्र में यह परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है। सबसे पहले ग्रामीण इष्ट देवता को प्रणाम कर अपने घरों में बकरी की पूजा करते हैं। त्योहार के दिन घरों में तरह-तरह के व्यंजन जैसे गुलगुले, पकोड़े आदि बनाए जाते हैं. एक दूसरे को अपने घर बुलाकर सामूहिक भोज करते हैं।

कुछ लोगों का मानना ​​है कि पौष के महीने में भारी बारिश और बर्फबारी के कारण लोग अपने घरों में बैठकर अपने गांवों में नाच-गाकर अपना मनोरंजन करते थे। ठंड के कारण वह बकरे का मांस खाते थे । तभी से इस पर्व में बकरे का मांस खाने की परंपरा चली आ रही है। माघ मास की शुरुआत से एक या दो दिन पहले यानी पौष के महीने में बकरे को काटा  जाता है। हालांकि अब बकरी काटने की परंपरा कम हो गई है। माघ मास को धर्म मास कहा जाता है।

वहीं इस पर्व को लेकर आज के युवाओं का कहना है कि माघ मरोज मनाने का मुख्य उद्देश्य इसकी पौराणिक लोक संस्कृति के स्वरूप का संरक्षण,संवर्धन व धरोहर के रूप को बचाना है. एक महीने तक चलने वाले इस उत्सव में आधी रात तक लोग बारी-बारी से गांव के एक बड़े घर में ढोल या ढोलकी की थाप पर नृत्य के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम का आनंद लेते हैं.

इस त्योहार में मुख्य रूप से गांव के ध्याणियां (विवाहित लड़कियां) को माइके बुलाकर रिश्तेदारों को भी अपने-अपने घरों में आमंत्रित करते है। स्थानीय निवासी मनोज ने बताया कि मरोज बहुत ही पौराणिक पर्व है। हमारे पूर्वज लगभग 100 साल पहले से इस पर्व को मनाते आ रहे हैं। हम आज भी उस पर्व को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मना रहे हैं। स्थानीय बुजुर्ग रतन सिंह पंवार ने बताया कि पहले लोग 11 महीने कमाते थे। माघ के महीने में सभी लोग खूब खाते-पीते थे. इस दौरान सभी आपस में मिलते रहते थे।