देहरादून, PAHAAD NEWS TEAM

उत्तराखंड में बग्वाल, इगास मनाने की परंपरा है. दिवाली को यहां बग्वाल कहा जाता है, जबकि बग्वाल के 11 दिन बाद एक और दीपावली मनाई जाती है, जिसे इगास कहा जाता है। पहाड़ की लोक संस्कृति से जुड़े इगास त्योहार के दिन घरों की सफाई कर मीठे व्यंजन बनाए जाते हैं और देवताओं की पूजा की जाती है.

यह संभव नहीं है कि त्योहार और उत्सव के सीजन के दौरान उत्तराखंड का जिक्र न हो। दीपावली का पर्व पूरे देश में धूमधाम से मनाया गया। यह भारत की सुंदरता है कि दीपावली का त्यौहार विभिन्न प्रांतों में प्रकाश के त्योहार के साथ-साथ अपने सदियों पुराने पारंपरिक तरीकों से मनाया जाता है। इसी तरह उत्तराखंड में भी दीपावली को अनोखे तरीके से मनाने की परंपरा है।

क्या है इगास त्योहार: उत्तराखंड में बग्वाल, इगास मनाने की परंपरा है। दिवाली को यहां बग्वाल कहा जाता है, जबकि बग्वाल के 11 दिन बाद एक और दीपावली मनाई जाती है, जिसे इगास कहा जाता है। पहाड़ की लोक संस्कृति से जुड़े इगास पर्व के दिन घरों की सफाई कर मीठे व्यंजन बनाए जाते हैं और देवताओं की पूजा की जाती है. साथ ही गाय और बैल की पूजा की जाती है। शाम के समय गांव में किसी खाली मैदान या खलिहान में नृत्य के भैलो खेला जाता है। भैलो एक प्रकार की मशाल है, जिसे नृत्य के दौरान घुमाया जाता है। ईगास पर पटाखों का प्रयोग नहीं किया जाता है।

इसलिए 11वें दिन मनाया जाता है इगास: ऐसी भी मान्यता है कि जब मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे तो लोगों ने घी के दीपक जलाकर उनका स्वागत किया। लेकिन, दीपावली के ग्यारह दिन बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को भगवान राम के गढ़वाल क्षेत्र में लौटने की सूचना मिली, इसलिए ग्रामीणों ने प्रसन्नता व्यक्त की और एकादशी को दिवाली मनाई।

यह दूसरी मान्यता है: दूसरी मान्यता यह है कि दिवाली के समय गढ़वाल के वीर माधो सिंह भंडारी के नेतृत्व में गढ़वाल की सेना ने दापाघाट और तिब्बत की लड़ाई जीती थी और दिवाली के ठीक 11वें दिन गढ़वाल सेना अपने घर पहुंची थी । उस समय युद्ध जीतने और सैनिकों के घर पहुंचने की खुशी में दिवाली मनाई जाती थी।

एक और कहानी यह भी है: इसी तरह की एक और कहानी है कि चंबा में रहने वाला एक व्यक्ति जंगल में भैलो बनाने के लिए लकड़ी लेने गया और ग्यारह दिनों तक नहीं लौटा। उनके दुख में वहां के लोगों ने दीपावली नहीं मनाई। जब वह व्यक्ति लौटा तो यह पर्व मनाया गया और लोक खेल भैलो खेला गया। तभी से इगास बग्वाल के दिन दिवाली मनाने और भैलो खेलने की परंपरा शुरू हुई ।

क्या है इगास बग्वाल : गढ़वाल में 4 बग्वाल हैं। पहला बग्वाल कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को होता है। दूसरी अमावस्या को पूरे देश की तरह गढ़वाल में भी अपनी लोक परंपराओं के साथ मनाई जाती है । तीसरा बग्वाल कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है, जो बड़ी बगवाल (दिवाली) के ठीक 11 दिन बाद आता है। गढ़वाली में एकादशी को इगास कहा जाता है। इसलिए इसे इगास बग्वाल के नाम से जाना जाता है। चौथा बग्वाल दूसरे बग्वाल या बड़ी बग्वाल के ठीक एक महीने बाद मार्गशीश महीने की अमावस्या के दिन आता है। इसे रिख बग्वाल कहा जाता है। यह गढ़वाल के जौनपुर, थौलधार, प्रतापनगर, रंवाई, चमियाला आदि क्षेत्रों में मनाया जाता है।