हल्द्वानी , PAHAAD NEWS TEAM

उभरते हुए युवा गायक अनिल रावत इन दिनों चर्चा में हैं. लोक गायिका माया उपाध्याय के साथ उनका नया गाना सुर्खियां बटोर रहा है. लेकिन अनिल अपने गाने से ज्यादा उसमें जो ड्रेस पहनी हैं, उसकी वजह से वह चर्चा में हैं। दरअसल, कुमाऊंनी गीत रधुली में अनिल रंगवाली पिछौड़ा से मिलते-जुलते कपड़े का वास्कट व टोपी पहने नजर आ रहे हैं. इसे लेकर इंटरनेट मीडिया पर दो तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। कोई इसे लोक संस्कृति के साथ मजाक बता रहा है तो कोई नए प्रयोगों के जरिए संस्कृति को बढ़ावा देने की बात कर रहा है।

प्रतिक्रियाओं से पहले पिछौड़ा पर बात। पिछौड़ा कुमाऊंनी महिलाओं का पारंपरिक पहनावा है। आमतौर पर इसे विवाहित महिलाएं शुभ, धार्मिक आयोजनों के दौरान घूंघट के रूप में पहनती हैं। विवाह समारोह में वर पक्ष की ओर से दुल्हन के पास जाने वाले कपड़ों में पिछौड़ा प्रमुख होता है। अल्मोड़ा निवासी 24 वर्षीय अनिल ने पिछौड़ा छींटदार कपड़े से वास्कट, टोपी पहनकर रधुली गीत में अभिनय किया है. मशहूर लोक गायिका माया उपाध्याय के साथ अनिल की जुगलबंदी में मनमोहक गाना है. वीडियो सॉन्ग में दोनों बीच-बीच में एक्टिंग भी करते नजर आ रहे हैं, लेकिन अनिल की पोशाक ने चर्चा को गीत के बजाय ड्रेस पर केंद्रित कर दिया है .

संगीत में तेजी से उभर रहे हैं अनिल

यह अनिल का तीसरा गाना है। इससे पहले उन्होंने मशहूर लोक गायक नैन नाथ रावल के गाने जब जोलौ बरेली.. और छोरी लछिमा को नए अंदाज में गाया. इंटरनेट मीडिया पर इस गाने को खूब पसंद किया गया । अनिल ने भातखंडे संगीत संस्थान से संगीत में विशारद के साथ कुमाऊं विश्वविद्यालय से संगीत में परास्नातक किया है। अनिल ने बताया कि एक गाना देखने के बाद उन्हें ऐसी ड्रेस का आइडिया आया।

शुभंकर में निहित है पिछौड़े की आत्मा

जानकारों के अनुसार पिछौड़ा की आत्मा कुमाऊंनी शुभंकर यानी शंख, लक्ष्मी, सूर्य, घंटी आदि में निहित है। जब तक पिछौड़े में यह न हों पिछौड़ा पूर्ण नहीं होता । यानी तब वह पिछौड़े का डिजाइन मात्र रह जाता है। लेखक विश्वंभर नाथ साह सखा ने अपनी पुस्तक में पिछौड़ा की परंपरा पर विस्तार से लिखा है। जिसमें पंडित, साह और ठाकुर समाज की महिलाओं के लिए अलग-अलग पृष्ठभूमि के रंग के पिछौड़ा होने का उल्लेख किया है. पिछौड़े का रंग देखकर ही महिला की पहचान हो जाती थी।