उत्तरकाशी, दिनांकः 08 सितम्बर 2022

‘‘आत्म-चिंतन’’ आध्यात्मिक साधना शिविर के चतुर्थ दिवस प्रतिभागी साधकों को वेदांत के गूढ़ रहस्यों से परिचित कराते हुए ब्रह्मचारी कौशिक चैतन्य जी ने बताया कि इस शरीर में जो चेतनता प्रतीत हो रही है उसका कारण क्या है। भगवतपाद् शंकराचार्य यहां तादात्म्य की बात कर रहे हैं। ब्रह्मसूत्र में इसी को अध्यास कहा गया है अर्थात अपने धर्मों का अपने स्वभाव का एक दूसरे में आरोप कर देना।

उदाहरण के लिए जब एक लौह पिण्ड जिसका स्वभाव शीतल है उसको अग्नि में तपाने के बाद वो अग्नि पिण्ड बन जाता है और शीतलता के स्थान पर उष्मता प्रदान करता है। अग्नि ने अपने उष्णता के स्वभाव को लौह पिण्ड में आरोपित कर दिया, मानो लौह पिण्ड ही अग्नि बन गया हो। ऐसे ही मनुष्य देह का स्वभाव है क्षरण और आत्मा का स्वभाव है अनन्तता, अजन्मता, अमरता, असंगता आदि, लेकिन हम अमर अविनाशी हैं ऐसा विचार नहीं आता क्योंकि शरीर के स्वभाव का आरोपण हमने मैं अथवा अहंकार के ऊपर कर दिया तो उस अजर अमर अविनाशी चेतना को हमने मरण धर्मा बता दिया क्योंकि शरीर के धर्मों का आरोप उस चेतन पर कर दिया। तो अब शरीर के मरने या बीमार पड़ने पर मैं मर अथवा बीमार पड़ जाता हूँ ऐसी हमारी समझ सुदृढ़ हो गयी। परन्तु ईश कृपा, शास्त्र कृपा और गुरू कृपा से जीवन के परम चरम लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है, साधक साधना के चरमोत्कर्ष में प्राप्तस्य प्राप्ति अर्थात जो सदा से ही प्राप्त था वो ईश्वर अथवा ज्ञान हमें अनुभव हो जाता है।

यह जान लेना ही कि वो ब्रह्म सदा मेरे पास है आपके ब्रह्मज्ञानी अथवा ब्रह्मनिष्ठ होने का सर्वोत्तम भाव है। ईश्वर प्राप्ति के लिए सूत्र है भक्ति क्योंकि भक्ति से प्रीति बढ़ती है, ईश्वर को याद करना नहीं पड़ता वह सदा याद बना रहता है। भक्ति माँ है ज्ञान पुत्र है। पहले भक्त फिर साधक फिर जिज्ञासु और फिर मुमुक्षू की स्थिति प्राप्त करना ही आध्यात्मिक यात्रा है।

इसके अतिरिक्त प्रतिभागी साधकों को 24 घण्टे का मौन व्रत भी कराया गया। चिन्मय मिशन, तपोवन कुटी आश्रम, उजेली, उत्तरकाशी में आयोजित यह आवासीय साधना शिविर दिनांक 11 सितम्बर 2022 तक चलेगा।