उत्तरकाशी , दिनांक 09 सितम्बर 2022

‘‘आत्म-चिंतन’’ आध्यात्मिक साधना शिविर के पंचम दिवस प्रतिभागी साधकों को वेदांत के गूढ़ रहस्यों से परिचित कराते हुए ब्रह्मचारी कौशिक चैतन्य जी ने बताया कि जो वो परम चेतना है जो चिद्छाया पड़ती है अर्थात जो मैं का उदय होता है उसके साथ तीन प्रकार से हमारा सम्बन्ध स्थापित होता है – सहज, कर्मज और भ्रांतिजन्य। कर्मज दुख कर्मों के क्षय से दूर होगा, जैसे जैसे कर्मों का क्षय होगा वैसे वैसे तादात्म्य की निवृत्ति होगी। इसीलिए संभल संभल कर कर्म करें क्योंकि परमात्मा हमारे सभी कर्मों का साक्षी है।

हमारे कर्मों के आठ साक्षी सदा रहते हैं – पंचमहाभूत, सूर्य, चन्द्रमा और आत्मा। भ्रांतिजन्य तादात्म्य ज्ञान से दूर होगा और जब ज्ञान की प्राप्ति होगी तब आप आनन्द के साथ अपने स्वरूप में प्रतिष्ठित होंगे। मन अहंकार से युक्त होकर सूक्ष्म शरीर का निर्माण करता है और वही जन्म लेता है और वही मरण को प्राप्त होता है अर्थात स्थूल शरीर जन्म लेता और मरता दिखता है परन्तु सूक्ष्म शरीर जो 24 तत्वों पंचविषय, पंचज्ञानेन्द्रियां, पंचकर्मेन्द्रियां और अन्तःकरण चतुष्टय से युक्त है वह ही जन्म और मृत्यु का हेतु है। माया की दो शक्तियां आवरण और विक्षेप हैं। सृष्टि में सत् चित् आनन्द है और ये सृष्टि जल में निकलने वाले फे़न की तरह है।

सृष्टि सच्चिदानंद से निकली है और वही रूप है। एक ही चैतन्य जीव है और वही एक ही चैतन्य ब्रह्म है, जब वह अज्ञान से आच्छादित हो जाता है तो जीव कहलाता है और जब ज्ञान हो जाता है तो वो ही ब्रह्म हो जाता है।

अध्यारोप के कारण जीवभाव का जो साक्षीत्व है वो हमको भासित होता है आवरण के नष्ट होने पर भेद नष्ट होता है जिससे जीव भाव भी नष्ट हो जाता है और ब्रह्मस्वरूप की प्राप्ति होती है। उसी प्रकार जो सृष्टि ब्रह्म और सृष्टि के बीच के भेद को आच्छादित करती है उसके कारण ब्रह्म जीव के रूप में भासित होता है क्योंकि उसके ऊपर आवरण आ गया है। अस्ति भाति प्रियम ये ब्रह्म के अंश हैं और नाम रूप ये जगत के अंश हैं इसीलिए इस नाम रूप की उपेक्षा कर दो फिर जो बचेगा वो ही तुम्हारा स्वरूप है तब सच्चिदानंद की अनुभूति होगी क्योंकि हृदय में ब्रह्म प्रवेश कर जाता है।

चिन्मय मिशन, तपोवन कुटी आश्रम, उजेली, उत्तरकाशी में आयोजित यह आवासीय साधना शिविर दिनांक 11 सितम्बर 2022 तक चलेगा।