उत्तरकाशी, 06 सितम्बर 2022

चिन्मय मिशन द्वारा तपोवन कुटी आश्रम, उजेली, उत्तरकाशी में आयोजित ‘‘आत्म-चिंतन’’ – आध्यात्मिक साधना शिविर के दूसरे दिन प्रतिभागी साधकों को वेदांत के गूढ़ रहस्यों से परिचित कराते हुए ब्रह्मचारी कौशिक चैतन्य जी ने बताया कि दिखायी देने वाला ये जो भी दृश्यमान प्रपंच है उस सबका दृष्टा एक साक्षी चैतन्य ही है। उस साक्षी में स्वयं को प्रतिष्ठित करना ही प्रत्येक मनुष्य का कत्र्तव्य है। किन्तु उसकी प्रक्रिया क्या है?

भगवतपाद् शंकराचार्य कहते हैं कि ‘‘साधन चतुष्टय – नित्यानित्यवस्तुविवेक, वैराग्य, षट्सम्पत्ति और मुमुक्षता’’ के माध्यम से हम अपने जीवन के परम चरम लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। किसी भी साधक में षट्सम्पत्ति अर्थात शम, दम, उपरति, तितीक्षा, श्रद्धा और समाधान का होना अनिवार्य अंग है। तभी उस साक्षी में प्रतिष्ठा हो सकती है जिससे हम असंगता, निर्विकारता और मुक्ति की परमानंद की अनुभूति कर सकते है। इसमें मुख्य रूप से जब तक वैराग्य की प्रबलता नहीं होगी तब तक अनासक्ति नहीं होगी और अनासक्ति बिना बंधन से मुक्ति की संभावना नहीं है।

मुक्ति की इच्छा रखने वाले जिज्ञासुओं के लिए धर्म-अधर्म, सत्य-असत्य, स्थूल-सूक्ष्म, दृष्टा-दृश्य और श्रेय-प्रेय का विवेक भी अति आवश्यक है। विवेक की जागृति होने पर ही हम अपने आत्मस्वरूप की ओर लौट सकते है।

दिनांक 5 से 11 सितम्बर तक चलने वाले इस आवासीय साधना शिविर में लखनऊ, दिल्ली, मुम्बई, जयपुर, बैंगलोर, कानपुर, जलगांव, कोलकाता आदि क्षेत्रों से आये अनेक साधकगण भाग ले रहे हैं जिसमें श्री रमेश मेहता, श्री सत्य कुमार श्रीवास्तव, श्रीमती किरन मेहता, श्री अनिल जैन, श्रीमती रमाश्री अग्रवाल, श्रीमती नीलम पाण्डेय, श्रीमती पूनम जैन, श्रीमती निशी राकेश पाण्डेय, श्रीमती संगीता श्रीवास्तव, श्री मान सिंह, श्री सभाजीत यादव, श्रीमती सुनन्दा शर्मा आदि शामिल हैं।