उत्तरकाशी , पहाड़ न्यूज टीम

देवभूमि उत्तराखंड की संस्कृति और विरासत अपने आप में अनूठी है. यहां हर त्योहार का अपना विशेष महत्व है। गंगा और यमुना घाटियों में धान की रोपाई शुरू होने से पहले ग्रामीण अपने देवता की डोली की विशेष पूजा करते हैं। मेलों का भी आयोजन करते है । ऐसा ही नजारा यमुना घाटी के उपराड़ी गांव में देखने को मिला। यहां ग्रामीणों ने देवता की डोली के साथ पारंपरिक वाद्ययंत्रों की थाप पर रासो तांदी नृत्य किया।

दरअसल, नौगांव प्रखंड के उपराड़ी गांव के बौखनाग मेले में मंदिर के पुजारी ने विधि विधान से बौखनाग देवता की डोली की पूजा की. मेले में ग्रामीणों ने पारंपरिक लोकगीतों पर जमकर डांस किया. आराध्य देव के दर्शन कर ग्रामीणों ने उनसे आशीर्वाद भी मांगा। स्थानीय निवासी मनोज बधानी ने बताया कि रोपाई का समय आ गया है. अच्छी फसल और परिवार की सुख-समृद्धि की कामना के लिए ग्रामीण इस मेले का आयोजन करते हैं।

उन्होंने बताया कि यह मेला भाटिया, कफनोल कंसेरू, उपराड़ी, छाड़ा, नंदगांव, चक्कर गांव, चेसना, कुंड, हुडोली आदि 12 गांवों के आराध्य देवताओं का मेला है। भाटिया, कफनोल, कंसेरू, नंदगांव में देवता के चार स्थान हैं। देवता प्रत्येक स्थान पर एक वर्ष तक निवास करते हैं। देवता की डोली 12 गांवों में भ्रमण करती है। देवडोली भ्रमण के दौरान हर गांव में रात्रि विश्राम करती है। इसके साथ ही उस गांव में भव्य मेले का आयोजन किया जाता है।

गांव की विवाहित बेटियां भी अपने मायके आकर रोपाई में बंटाती हैं हाथः : वहीं गांव की ध्याणियां भी मायके आकर बढ़चढ़ कर मेले में उत्साह से भाग लेती हैं. वह धान की रोपाई में भी मदद करती है। भक्त अपनी प्रार्थना पूरी होने पर आराध्य देवता को छतर चढ़ाते हैं। इसके साथ ही विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है। मंदिर के पुजारी पर पश्वा अवतरित होते हैं, जो मेले में ग्रामीणों को अपना आशीर्वाद देते हैं।