देहरादून,

फर्जी रजिस्ट्री घोटाले में एक और अभियुक्त को दून पुलिस ने गिरफ्तार किया है। अभियुक्त द्वारा अपने साथियों के साथ मिलकर माजरा स्थित रक्षा मत्रांलय की भूमि तथा क्लेमेन्टाउन स्थित भूमि के फर्जी विलेख पत्र बनाते हुए उक्त भूमि को अन्य लोगों को विक्रय किया गया था। फर्जी रजिस्ट्री प्रकरण में एसआईटी द्वारा की जा रही जांच में अब तक 16 अभियुक्तों को गिरफ्तार किया जा चुका है तथा गिरफ्तार अभियुक्तों से पूछताछ में अन्य व्यक्तियों के नाम भी उक्त प्रकरण में प्रकाश में आये हैं, जिनके सम्बन्ध में एसआईटी द्वारा लगातार गहन विवेचना कर साक्ष्य संकलन की कार्यवाही की जा रही है।


सहायक महानिरीक्षक निबन्धन संदीप श्रीवास्तव द्वारा टर्नर रोड से सुभाष नगर चैक के मध्य क्लेमनटाउन में लगभग 2500 गज भूमि तथा लगभग 55 बीघा जमीन ग्राम माजरा के फर्जी विलेख पत्र के सम्बन्ध में कोतवाली नगर देहरादून में क्रमशः मु0अ0स0 378, 2023 धारा- 420, 467, 468, 471, 120बी भादवि व मु0अ0स0-379, 2023 धारा 420, 467, 468, 471, 120बी भादवि पंजीकृत कराया गया है। उक्त प्रकरण में बिजनौर निवासी हुमायूँ परवेज का नाम प्रकाश में आने पर एसआईटी द्वारा उक्त अभियुक्त के विरूद्ध साक्ष्य संकलन की कार्यवाही करते हुए अभियुक्त हुमायूँ परवेज को गिरफ्तार किया गया।  दौराने विवेचना यह तथ्य प्रकाश में आये कि मौहम्मद हुमायू परवेज पुत्र जलीलू रहमान निवासी 24 मौहल्ला काजी सराय 2, नगीना जिला बिजनौर, उ0प्र0 द्वारा अपने साथी समीर कामयाब व अन्य साथियो की मदद से फर्जी विलेख तैयार कर देव कुमार निवासी सहारनपुर की मदद से रिकार्ड रुम रजिस्ट्रार कार्यालय में वर्ष 2016-17 में जिल्द में लगवा दिया था, जिसमें टर्नर रोड से सुभाष नगर चैक के मध्य क्लेमनटाउन स्थित जमीन का अल्लादिया से 1944 में जलीलू रहमान व अब्दुल करीम को फर्जी बैनामा बनाकर मालिक दर्शाया गया तथा 2019 से 2020 के बीच हुमायू परवेज द्वारा वसीयत के आधार पर 11 व्यक्तियों को उक्त जमीन की रजिस्ट्रिया कर दी गयी, जिसमें उसने लगभग 03 करोड रू0 जे0 एण्ड के0 बैंक सहारनपुर के खाते में प्राप्त किये गये। ग्राम माजरा की जमीन के असली मालिक लाला सरनीमल व मनीराम से फर्जी बैनामा 1958 का बनाकर जलीलू रहमान व अर्जुन प्रसाद को मालिक दर्शाया गया तथा सीमांकन हेतु प्रार्थना पत्र एसडीएम कार्यालय व उच्च न्यायालय उत्तरखण्ड को प्रेषित कर आदेश करवाये गये परन्तु ग्राम माजरा स्थित लगभग 55 बीघा जमीन वर्ष 1958 में तत्कालीन जिलाधिकारी द्वारा रक्षा मंत्रालय के नाम कर दी गयी थी, जो आज भी रक्षा मंत्रालय के कब्जे में है, जिस कारण सीमांकन की कार्यवाही को खारिज किया गया था।