देहरादून:
राजेश्वर नगर, देहरादून के निवासी श्री जगदीश कुमार कथूरिया पिछले 50 वर्षों से अपने खर्चे पर रावण का पुतला बना रहे हैं। उनकी उम्र अब 75 साल हो चुकी है, लेकिन उनके अंदर रावण का पुतला बनाने का जो जुनून और उत्साह था, वह आज भी उतना ही प्रबल और सजीव है, जितना 50 साल पहले था जब उन्होंने पहली बार पुतला बनाया था।
श्री कथूरिया ने 1964 में अपने गुरु मास्टर रामचंद चावला के मार्गदर्शन में पहली बार रावण का पुतला बनाया था। उस समय से लेकर आज तक, यह परंपरा निरंतर जारी है। दशहरे का त्योहार उनके जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन चुका है, और हर साल वह इस काम को उसी समर्पण और धैर्य के साथ करते हैं जैसे पहले किया करते थे। उनके बनाए रावण के पुतले की खास बात यह है कि इसका पूरा खर्च वह स्वयं वहन करते हैं। इसके लिए आवश्यक सामग्री—जैसे बांस की लकड़ियाँ, कागज, और सजावटी रंगीन कागज—वह खुद अपने पैसों से खरीदते हैं।
रावण का पुतला बनाने की प्रक्रिया भी बड़ी श्रमसाध्य होती है। श्री कथूरिया बताते हैं कि एक पुतले को तैयार करने में उन्हें लगभग 40 से 50 दिन का समय लगता है। वह रोज़ाना 10 से 12 घंटे तक इस कार्य में जुटे रहते हैं। उम्र के इस पड़ाव में भी उनकी लगन और मेहनत किसी युवा से कम नहीं है, और उनका यह समर्पण वाकई प्रेरणादायक है।
रावण के पुतले की संरचना में बांस की लकड़ियों का ढांचा तैयार किया जाता है, जिस पर कागज और रंगीन कागजों की सजावट की जाती है। इसे सजाने के लिए श्री कथूरिया अलग-अलग रंगों और डिज़ाइनों के कागज का उपयोग करते हैं, ताकि पुतला सुंदर और आकर्षक दिखे। उनका हर पुतला देखने में भव्य और अनोखा होता है, और दशहरे के दिन जब यह जलाया जाता है, तो पूरे इलाके के लोग इस आयोजन में बड़े उत्साह के साथ भाग लेते हैं।


श्री कथूरिया बीएसएनएल से सेवानिवृत्त हैं और देहरादून के राजेश्वर नगर फेज 1 में रहते हैं। हर वर्ष, इसी इलाके में दशहरे के दिन रावण दहन का आयोजन होता है, जिसे देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा होते हैं। दशहरा उनके लिए सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि एक जीवन की लम्बी और समर्पित यात्रा का हिस्सा है, जिसमें वह हर साल अपनी कला और श्रद्धा से योगदान करते हैं।
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