जौनपुर , पहाड़ न्यूज टीम

मां भद्रकाली-देवी भगवती मंदिर, देवीकोल में आषाढ़ माह के अंत में और सावन की शुरुआत को पड़ने वाली संग्राद की वार्षिक पूजा आज मनाई गई है। आज देवीकोल नामक स्थान पर स्थित मंदिर परिसर में वार्षिक पूजा और हवन का आयोजन किया गया है। जिसमें ग्रामीण सिरनी व नौण (गाय के दूध) से देवी भद्रकाली की पूजा करते हैं और अपने परिवार, पशुओं और फसलों की रक्षा के लिए प्रार्थना करते हैं, पूजा के दौरान सिलवाड़ पट्टी के ग्यारह गांवों तथा अठज्यूला उपपट्टी के आठ गांवों के ढोल दमाउ व रणसिंघा के नाद के साथ अनेक पश्वाओं पर इष्टदेव अवतरित होते हैं।

इस अवसर पर मंदिर समिति द्वारा मंदिर परिसर में वृक्षारोपण किया गया, जो प्रतिवर्ष वार्षिक पूजा के दौरान किया जाता है। वार्षिक पूजा में लगभग दो दर्जन गांवों के पुरुष, महिलाएं और बच्चे शामिल हुए हैं.इस अवसर पर अठज्यूला ओर सिलवाड़ के लोगो ने काफी उत्साह देखने को मिला, लोगो ने बढ़ चढ़कर भाग लिया

पूजा के बाद लोगों ने अपने घरों के आसपास पौधे रोपे और घरों में तरह-तरह के पकवान बनाए। प्रशासन द्वारा विभिन्न स्थानों पर पौधरोपण अभियान भी शुरू कर दिया गया है। देवीकोल मंदिर में विशेष पूजा अर्चना की गई। धार्मिक आस्था के प्रतीक सावन मास और लोक पर्व हरेला के संगम पर लोगों का उत्साह चरम पर है।

इस अवसर पर जोत सिंह रावत अध्यक्ष, नागेंद्र सिंह राणा, नागेंद्र सिंह रावत, रामचंद्र सिंह रावत प्रधान कांडी, कनाया सिंह राणा, केशव सिंह राणा, आदि लोग मौजूद थे

हरेला है प्रकृति पूजा का पर्व

प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने का पर्व हरेला मानव और पर्यावरण के बीच अंतर्संबंध का अनूठा पर्व है। वनों से हमें कई प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लाभ मिलते हैं। कई प्रकार की जड़ी-बूटियां उपलब्ध हैं। जिनका उपयोग दवा बनाने में किया जाता है। भारत में लगभग 35 लाख लोग वन आधारित उद्योगों में काम करके अपनी आजीविका कमाते हैं। हरेला पर्व पर फलदार एवं कृषि उपयोगी पौधे लगाने की परंपरा है। हरेला को न केवल अच्छी फसल उत्पादन के प्रतीक के रूप में बल्कि ऋतुओं के प्रतीक के रूप में भी मनाया जाता है।

आज देवीकोल मेले में रही रौनक, झूमते रहे लोग

आस्था की प्रतीक मां भद्रकाली देवी देवीकोल मेले में 2 सालो की तुलना में आज अधिक चहल-पहल देखने को मिली. सुबह से ही मेले में आने वालों की संख्या काफी ज्यादा थी। दोपहर तक मेले में मुख्य स्थानों पर भारी भीड़ देखने को मिली. वहीं मस्ती के दीवाने युवा अलग ही अंदाज में मस्ती करते नजर आए. मेले में सुंदरता देख शिल्पकार भी काफी खुश नजर आए। चौपाल पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने भी लोगों पर एक अलग छाप छोड़ी।

माना जाता है की मां भद्रकाली को सिलवाड एवम अठजुला पालक के में भी जाना जाता है जब भी कभी क्षेत्र के लोगो पर कोई विपत्ति आती है तो तब लोग माता के दरबार में हाज़री लगाते है, माता रानी के आश्रीवाद से क्षेत्र में खुशहाली बनी रहती है।

इस अवसर पर सभी सभी क्षेत्र वासी अपने पारम्परिक परिधानों में नज़र आते है और अपने जौनपुरी रासो नृत्य करते है। माना जाता है के पहले के टाइम पर संचार के कोई साधन नही होते थे तो सभी लोग इन मेलो में मिल लिया करते थे।

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