मसूरी:

आज आधी रात संदेहास्पद अग्निकांड में मसूरी में भारत और पूर्वी एशिया का सबसे पहला स्केटिंग हाल ‘द रिकं’ जलकर राख हो गया। अविभाजित देश को स्केटिंग का खेल देने वाला यह रिंक हाल कोलकाता के एक अंग्रेज दंत चिकित्सक ने 1890 में बनाया था। आयरलैंड के डबलिन शहर के एक मध्ययुगीन प्रेक्षागृह के भव्य आर्किटेक्ट पर मसूरी में यह स्केटिंग हाल 1885 में बनना शुरू हुआ और अप्रेल 1890 में इसमें देश और पूर्वी एशिया की पहली स्केटिंग शुरू हुई।

विदेशी कारीगरों द्वारा निर्मित द रिंक का फर्श 127×76 फीट डिजायन किया गया था, जिसकी लकडी नार्वे से मंगायी गयी थी। 1895 में पहाडी विल्सन के पुत्र चार्ल्स विल्सन(चार्ली) ने रिंक खरीद लिया और वह 1923-24 तक वह इसके स्वामी रहे। चार्ल्स विल्सन हर्षिल की पहाडी मां गुलाबो और अंग्रेज पिता फ्रेडरिक विल्सन(पहाडी विल्सन) का सबसे बडा बेटा था, जो उन दिनों देहरादून में वर्तमान अस्ले हाल और दून क्लब समैत मसूरी दून में कई बडी भू संपत्तियों का स्वामी था। चार्ल्स विल्सन ने गंगा घाटी, उत्तरकाशी और थौलधार (टिहरी गढ़वाल) के कई पहाडी नौजवानों को स्केटिंग में प्रशिक्षित कर चीन, यूरोप और आस्ट्रेलिया तक भेजा, जिसकी मेरे पास एक दस्तावेजी लिस्ट है।

कुछ रिकार्डों के अनुसार चार्ली ने 1920 में अपने मैनेजर ए जी विन को इस संपत्ति के अधिकार सौंपे, विन ने इसमें प्रथम विश्वयुद्ध के दिनों में पेवेलियन सिनेमा(बाईसकोप) शुरू किया और रिंक परिसर में उत्तर भारत का पहला मिनिरल वाटर प्लांट लगाया। बाद में द रिंक मसूरी के प्रख्यात सेठ पूरण चंद एंड सन्स के परिवार ने खरीदा और हाल में यह बिका।

1946 तक इसमें फोसेज क्लब के सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए और 1950 में यह मसूरी शरदोत्सव का केन्द्र बना और 1982-83 तक रिंक शरदोत्सव की जान होता था। मेरी याददाश्त में 1960 में द रिंक में दारा सिंह और किंगकांग की प्रसिद्ध कुश्ती हुई थी, जिसके बडे बडे कट आऊट मसूरी भर में लगाये गये थे। तीन रिक्शों पर ढोलची भौंपू के साथ इस कुश्ती का प्रचार करते थे, उन दिनों मैं स्थानीय बेवरली कान्वेंट जीजस एंड मेरी स्कूल से निकलकर मसूरी के रमादेवी स्कूल पहुंचा ही था।

1967 में मसूरी माल रोड स्थित सुप्रसिद्ध स्टेण्डर्ड रिंक भी इसी तरह संदेहास्पद हालत में अग्निकांड की भेंट चढ गया था, जिसमें तत्कालिन स्वामी की बीवी जलकर मर गयी थी, मुझे याद है मैं उस रात रियोल्टो सिनेमा से नाईट शो देखकर लौट रहा था और पूरा माल रोड आग की लपटों से घिरा था।(इस पर एक ऐतिहासिक लेख मैंने साल 2002 में मफसिलाइट वीकली में लिखा था।)

पुराने मसूरी वासी की तरह द रिंक और स्टेण्डर्ड रिंक से मेरी बचपन व जवानी की बहुत से स्वर्णिम यादे जुडी हैं। मैंने स्केटिंग बचपन में स्टेण्डर्ड रिंक में सीखी थी और 1972 तक द रिंक से मेरा नाता रहा, 1972 के बाद मैंने द रिंक में शरदोत्सव में कई नाटकों में हिस्सा लिया, दरअसल 1970 दशक के कालेज दिनों में शरदोत्सव का द रिंक हमारे जैसे अनेक नौजवानों का अपनी माशूका से मिलने की बेहतरीन जगह होती थी।

स्टेण्डर्ड रिंक के लगभग 56 साल बाद आज द रिंक रात को ठीक उसी अंदाज में संदेहास्पद हालत में आग से जलकर ठीक उसी तरह खाक हो गया। स्टेण्डर्ड रिंक अग्निकांड के बारे में उन दिनों चर्चा थी कि बीमा की रकम के चक्कर में यह हाल जल गया और मालिक की बीवी मर गयी, द रिंक के ताजा अग्निकांड के बाबत भी तरह तरह की बाते हवा में तैर रही हैं। यह तय है कि कल उस जगह शानदार होटल अस्तित्व में आयेगा, पर शहर और देश के इतिहास ने आज एक शानदार अमानत सदा के लिए खो दी है। अच्छी बात यह है कि द रिंक अग्निकांड में इसके परिसर में सो रहे सब लोग जीवित बच गये। आज दोपहर तक अग्नि शमन सेवा मुस्तेदी से आग बुझा रही थी। आसपास के इमारतें बच गयी, लेकिन कुछ लोगों का नुकसान हुआ है

… अलविदा द रिंक, मरते दम तक याद आओगे मित्र।
तुझे मेरी और तमाम पुराने मसूरियन की अश्रुपूरित श्रद्धांजलि